कांकेर। यह सर्वविदित है कि लॉकडाउन पीरियड में देश के हर नागरिक ने बहुत घाटा सहन किया है लेकिन सर्वाधिक घाटा मज़दूर वर्ग को हुआ है क्योंकि अ...
कांकेर। यह सर्वविदित है कि लॉकडाउन पीरियड में देश के हर नागरिक ने बहुत घाटा सहन किया है लेकिन सर्वाधिक घाटा मज़दूर वर्ग को हुआ है क्योंकि अर्थशास्त्र भी यही कहता है कि जिस दिन मजदूर को मजदूरी नहीं मिलती या वह रम नहीं करता तो उस दिन का श्रम नष्ट हो जाता है और उसकी भरपाई असंभव हो जाती है।
अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार पूंजीपति यदि सही व्यक्ति है तो वह मजदूर के पुराने घाटे की पूर्ति हेतु उसका मेहनताना बढ़ा सकता है लेकिन यदि पूंजीपति ग़लत व्यक्ति हो तो वह अपने घाटे की पूर्ति के लिए मजदूर की मजदूरी घटाकर उसका शोषण करता है। दुख की बात यह है कि कांकेर के पूंजीपति विशेषकर मिल वाले यही कर रहे हैं। यहां के राइस मिलर्स जोकि विशेष घाटे में भी नहीं रहे हैं लेकिन मज़दूरों की मजदूरी घटाकर उनके पेट पर लात मार रहे हैं बल्कि विरोध करने वालों को निकाल बाहर कर उनके बदले बाहर से मजदूर बुलाकर लगाए जा रहे हैं, जो प्राकृतिक न्याय के विपरीत है तथा ऐसा करना हमेशा भविष्य के लिए घातक होता है। ज्ञातव्य है कि कांकेर जिले के माकड़ी, भानुप्रतापपुर, चारामा, करप तथा जुनवानी के राइस मिलर्स ने यही किया है और इसके विरोध में सारे मजदूर अपनी माताओं बहनों बच्चों सहित आंदोलन कर रहे हैं क्योंकि यह उनकी रोजी-रोटी और जिंदगी का सवाल है। जिला प्रशासन के अफ़सरों से भी फरियाद की गई है और वे लोग भी स्थिति को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। इतने बड़े बड़े अफसर हैं, क्या उन्होंने अर्थशास्त्र नहीं पढ़ा होगा? लेकिन मज़दूरों के पक्ष में कुछ भी करने से वे बच रहे हैं और अप्रत्यक्ष रूप से पूंजीपति राइस मिलर्स अर्थात शोषण करने वालों का ही साथ दे रहे हैं। कांकेर जिले के अन्य मिल वाले भी उपरोक्त पांच स्थानों के राइस मिलर्स का ही पक्ष लेते प्रतीत होते हैं। अब तक आंदोलन शांतिपूर्ण है लेकिन आगे उसके उग्र होने तथा स्थिति के बिगडऩे का पूरा ही अंदेशा है, जिस पर जिला प्रशासन को समय रहते उचित ध्यान देना चाहिए।
राज्य सरकार को भी चाहिए कि रात दिन अपनी तिजोरियाँ भरने वाले राइस मिल वालों का साथ देने के बदले उन्हें अपने हजारों मज़दूरों तथा उनके परिवारों का ख्याल करना चाहिए जो लॉकडाउन पीरियड से अब तक लगातार गऱीबी और तंगी में जी रहे हैं। दुख की बात तो यह भी है कि मिल मालिकों ने अपने ऐसे मज़दूरों को भी निकाल बाहर कर दिया है जो उनके साथ बरसों से काम कर रहे थे और उन्हें अपने घर का सदस्य ही मानते थे। मिल मालिकों की इस बेरहमी से आम जनता में भी बहुत आश्चर्य है।
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