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थाने की नाक के नीचे अवैध कब्जे, प्रशासन बेपरवाह

कांकेर । जी हां ,यह सच है कि कांकेर के आदर्श पुलिस थाने के एक कोने पर ही अवैध कब्जाधारी न केवल दुकान खोले बैठा है बल्कि उसने अपनी दुकान की ब...


कांकेर । जी हां ,यह सच है कि कांकेर के आदर्श पुलिस थाने के एक कोने पर ही अवैध कब्जाधारी न केवल दुकान खोले बैठा है बल्कि उसने अपनी दुकान की बाजू की गली में भी अपना सामान बिखरा कर एक प्रकार से अवैध कब्जा का विस्तार भी कर लिया है। यह कब्जा न केवल थाने से लगकर है बल्कि मेन रोड पर भी है ,जहां से होकर जिले के आला अफसर दिन में कई बार गुजरते हैं, लेकिन उन्हें अवैध कब्जा दिखाई क्यों नहीं देता है। यह रहस्य की बात प्रतीत होती है। यह भी बता दें कि यह अवैध कब्जा आज से नहीं बरसों और दशकों से है, लेकिन न जाने किस रहस्यमय कारण से न तो नगरपालिका न राष्ट्रीय राजमार्ग अधिकारी न नजूल और न कलेक्टर कोई भी इस दुकानदार पर कार्यवाही नहीं करते।
     ऐसा लगता है कि इस दुकानदार की पहुंच या तो प्रधानमंत्री तक है या फिर उसे कोई जादू टोना आता है, जिसकी वजह से जिले के सारे ऑफिसर उसके वश में हो जाते हैं और एक नोटिस तक नहीं देते। कभी अगर दिखावे के लिए एक दिन गली खाली करा करा ली जाती है तो दूसरे ही दिन पुन: बंद दिखाई देती है और दुकानदार का सामान उसमें पड़ा हुआ दिखाई देता है।  वैसे तो कांकेर में दुकान के आगे सामान फैलाने वाले व्यापारी बहुत हैं, लेकिन थाने की नाक के नीचे अवैध कब्जा और गली में भी कब्जा कर छोटी सी दुकान चलाने वाले इस छोटे दुकानदार के आगे बाकी करोड़पति व्यापारी भी बौने दिखाई देते हैं। इसी तरह थाने के उत्तर पश्चिमी कोने में एक मुन्ना मुन्नी स्टोर है जिसके आगे खुलेआम सड़क पर एक चार पहिया वाहन महीनों से खड़ा है और जिसके कारण हाट बाजार जैसी जगह में पब्लिक को तकलीफ हो रही है, लेकिन पुलिस और प्रशासन को न जाने क्यों उस  चार पहिया वाहन के सड़क पर खड़े रहने से,(वह भी महीनों से खड़े रहने से भी) कोई तकलीफ नहीं है और उसे यातायात बाधित नहीं लगता जबकि आस पास कोई देहाती महिला सामान लेकर बैठ जाए तो उसे यातायात में बाधा मानकर भगा दिया जाता है और अगली बार बैठने पर सब्जी या सामान जब्त करने की चेतावनी भी दे दी जाती है।
 रही  बात कांकेर के नगर पालिका और नजूल की, उन्हें तो सबसे ज्यादा आनंद गरीबों की झोपडिय़ां तोडऩे में आता है। किंतु थाने के आसपास की अवैध दुकानों को तोडऩे तो क्या, नापने तक में डर लगता है, कि पता नहीं किस नेता का वरद हस्त उस दुकानदार पर हो या वह पुलिस का आदमी हो? यातायात पुलिस ने पिछले कुछ समय में कई अच्छे काम कर दिखाए हैं लेकिन उपरोक्त दोनों मामलों में वह भी कुछ नहीं कर रही है, यह बहुत ही आश्चर्य की बात है। क्या शासन में बैठे उच्च अधिकारी कुछ ध्यान देंगे और अपनी ईमानदारी का परिचय देंगे अन्यथा पब्लिक में तो शासन-प्रशासन की इस लापरवाही का बहुत गलत संदेश जा रहा है । बड़े अधिकारी समझते ही होंगे कि क्या गलत संदेश जा रहा है...?

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