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असम जीतने छोड़ी पार्टियों के भरोसे कांग्रेस

गुवाहाटी। तरुण गोगोई से मौत से कमजोर हुए कांग्रेस अब असम का रण जीतने तोड़-तोड़ की रणनीति पर उतर आई है। या यूं कहें कि कांग्रेस को अब छोटी पा...


गुवाहाटी। तरुण गोगोई से मौत से कमजोर हुए कांग्रेस अब असम का रण जीतने तोड़-तोड़ की रणनीति पर उतर आई है। या यूं कहें कि कांग्रेस को अब छोटी पार्टियों का ही सहारा है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी यह समझ रही है कि वह सत्तासीन बीजेपी से अकेले नहीं लड़ सकती, इसलिए कई छोटी पार्टियों से गठबंधन का रास्ता अख्तियार किया गया है। पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में अगर कांग्रेस सबसे ज्यादा कहीं आशांवित नजर आ रही है तो वह राज्य असम है। कांग्रेस को भरोसा है कि गठबंधन, तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण के बूते वह सत्ता में वापसी कर लेगी। 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हटाकर राज्य में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी हालांकि इससे पहले 1979 में जोगेंद्र नाथ हजारिका की अगुवाई में जनता पार्टी सत्ता में काबिज हो चुकी है।
-तरुण गोगोई की मौत से कांग्रेस को लगा था झटका
असम कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। लगातार 15 साल तक यहां उसकी सरकार रही और तरुण गोगोई पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा थे, जिनके नाम और काम पर राज्य के लोग हाथ का साथ देते थे। 2016 में सूपड़ा साफ होने के बाद कांग्रेस राज्य में अपनी अस्तित्व की लड़ाई लडऩे लगी। इस बीच कोरोना महामारी ने पूर्व मुख्यमंत्री और सबसे कद्दावर नेता तरुण गोगोई को भी छीन लिया। बीते साल नवंबर में उनकी मौत के बाद कांग्रेस कई धड़ों में बंट गई। अब कांग्रेस को भी यह समझ में आ चुका है कि सत्तासीन बीजेपी से वह अकेले संघर्ष नहीं कर सकती इसलिए कई छोटी पार्टियों से गठबंधन का रास्ता अख्तियार किया गया है।

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