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नगर निगम में सैलरी घोटाला फूटने के बाद सफाई कर्मचारियों की सूची की जांच शुरु

एक क्लर्क और कंप्यूटर प्रोग्रामर ने सफाईकर्मियों की सूची में जोड़ दिए  6 रिश्तेदारों के फर्जी नाम- 5 साल में 71 लाख निकाले रायपुर। नगर निगम म...

एक क्लर्क और कंप्यूटर प्रोग्रामर ने सफाईकर्मियों की सूची में जोड़ दिए  6 रिश्तेदारों के फर्जी नाम- 5 साल में 71 लाख निकाले


रायपुर। नगर निगम में सैलरी घोटाला फूटने के बाद सफाई कर्मचारियों की सूची की जांच शुरु कर दी गई है। वहीं घोटाला सामने आने के बाद निगम में हड़कंप मचा हुआ है। अधिकारी जांच कर रहे हैं कि कहीं और तो फर्जीवाड़े नगर निगम में नहीं चल रहे हैं। ज्ञात हो कि नगर निगम के जोन-3 में ऐसे घोटाले का पर्दाफाश हुआ, जो अब तक नहीं हुआ था। यहां के एक क्लर्क और कंप्यूटर प्रोग्रामर ने सफाईकर्मियों की सूची में पांच साल पहले एक-एक कर अपने छह रिश्तेदारों के नाम जोड़ लिए, जबकि वे कर्मचारी थे ही नहीं। इनके नाम से हर महीने 16-16 हजार रुपए वेतन निकलकर इनके खाते में जाता रहा। हाल में जोन दफ्तर में नई अकाउंट अफसर आईं और गड़बड़ी मिलने के बाद उन्होंने अफसरों को खबर दी। जांच शुरू हुई, तो पता चला कि इन 6 फर्जी कर्मचारियों के खाते में 5 साल में 71 लाख 19 हजार रुपए वेतन के रूप में जमा किए जा चुके हैं। इस मामले से जोन दफ्तर में हड़कंप मच गया। जोन अफसरों ने ही थाने में इसकी एफआईआर करवाई है। पुलिस ने क्लर्क और कंप्यूटर प्रोग्रामर के साथ-साथ सभी लाभान्वित 6 रिश्तेदारों के खिलाफ चारसौबीसी और साजिश का मामला दर्ज किया है। अभी गिरफ्तारी नहीं हुई। सिविल लाइंस पुलिस के मुताबिक इस मामले में जोन-3 के क्लर्क गंगाराम सिन्हा और कंप्यूटर आॅपरेटर नेहा परवीन को मुख्य आरोपी बनाया गया है। इस फर्जीवाड़े की शुरूआत 2016 में गंगाराम ने सफाई कर्मचारियों की सूची में अपनी पत्नी का नाम जोड़कर की। उसी महीने से वेतन के रूप में उसकी पत्नी देवकुमारी के खाते में पैसे जाना शुरू हो गए। 5 महीने नहीं बीते थे कि गंगाराम ने सूची में बेटे शुभम का नाम भी जोड़ दिया। यह बात कंप्यूटर आॅपरेटर परवीन को लगी तो उसने सफाईकर्मियों की सूची में अपनी मां सरवरी बेगम का नाम जुड़वा दिया। इसके बाद गंगाराम ने अपने रिश्तेदार अशोक सिन्हा का नाम जोड़ा। यह पता चलने के बाद परवीन ने अपनी बहन निगार और रिश्तेदार खालिदा अख्तर का नाम भी जुड़वा दिया। सभी के नाम से हर महीने वेतन जारी होता रहा और पैसे उनके बैंक खातों में जाते रहे। 5 साल में इन 6 फर्जी कर्मचारियों के खाते में निगम की तरफ से वेतन के तौर पर 71.19 लाख रुपए जमा हुए। इस दौरान किसी ने खातों की जांच नहीं की। यहां तक कि सफाईकर्मियों की दर्ज संख्या और वास्तविक तौर पर तैनात कर्मचारियों की गणना तक नहीं हुई। जानकारों के मुताबिक अगर होती, तब भी यह गोलमाल आसानी से इसलिए नहीं फूटता क्योंकि निगम में सफाईकर्मियों की संख्या बढ़ती-घटती रहती हैं।
16 हजार रु. से ज्यादा वेतन
पुलिस ने बताया कि हर आरोपी के खाते में पिछले पांच साल से 16 हजार रुपए से अधिक जमा हो रहे थे। प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि यह फर्जीवाड़ा 2016 से चल रहा था। पड़ताल की जा रही है कि उससे पहले से तो पैसे जमा नहीं हो रहे थे, या सूची में इस तरह के और फर्जी कर्मचारी तो नहीं हैं। निगम में नियमित सफाईकर्मियों का वेतन 16 हजार रुपए और अस्थायी का 8 हजार रुपए महीना है। शक है कि ऐसा फर्जीवाड़ा अस्थायी कर्मचारियों की सूची में भी हुआ होगा, क्योंकि वहां ऐसा होना ज्यादा आसान है।
सभी जोन में शुरू हुई जांच
फर्जीवाड़ा फूटने से निगम के जोन दफ्तरों में हड़कंप मचा और सभी में सफाईकर्मियों की सूची की जांच शुरू कर दी गई है। वहां कर्मचारियों की संख्या जांची जा रही है, ताकि पता चले कि कोई कर्मचारी फर्जी तो नहीं है। क्योंकि सभी जोन दफ्तर में सफाई से लेकर अलग-अलग रैंक के कर्मचारी अलग है। जोन दफ्तर में ही उनका वेतन बनता है और वहीं से जारी होकर बैंक खाते में जाता है।


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