abernews अबेर न्यूज रायपुर। होलाष्टक 21 मार्च से लगेगा। फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहते है। इस अवध...
abernews अबेर न्यूज रायपुर। होलाष्टक 21 मार्च से लगेगा। फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहते है। इस अवधि को अशुभ माना जाता है। हालांकि देवी-देवताओं की पूजा-पाठ करने के लिए यह समय सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। होली के आठ दिन पहले शुरू होकर होलिका दहन के बाद होलाष्टक खत्म हो जाता है।
पं. अभिनेष पांडेय बताते है कि होलाष्टक का आशय होली के पूर्व के आठ दिन है। उन्होंने बताया कि होलिका के प्रह्लाद को जलाने के आठ दिन पहले उसे मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने उसे तमाम शारीरिक प्रताडाएं दीं। इसलिए इन 8 दिनों को हिंदू धर्म के अनुसार सर्वाधिक अशुभ माना जाता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होलाष्टक के प्रथम दिन अर्थात फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है। इस वजह से इन आठों दिन मानव मस्तिष्क तमाम विकारों, शंकाओं और दुविधाओं आदि से घिरा रहता है।
रविवार को शुरू होकर आठ दिनों बाद होलिका दहन पर समाप्त होगा। पं. अभिनेष पांडेय ने बताया कि इस समय विशेष रुप से हर दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से विवाह संबंधी दोष दूर होते है तथा मनुष्य के जीवन में आ रही सभी कठिनाई यों का समाधान होता है। दूसरा होलाष्टक के आठ दिनों में हर दिन सुंदरकांड का पाठ करके आठवें दिन यानी होलिका दहन के दिन पीली सरसों यदि होलिका में डाली जाए तो कर्ज संबंधी दोषों से मुक्ति मिलती है, रोग नाश होता है और शत्रु भय से मुक्ति मिलती है।
होलाष्टक के आठ दिनों तक दुर्गा सप्तशती में वर्णित कवच अर गला और कीलक का पाठ करके 11वें अध्याय का पाठ करने से धन संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलती है और रेजगारी प्राप्त होता है। होलाष्टक के आठ दिनों में हर दिन आठ सरसो के तेल के दीपक घर के द्वार पर जलाने से सभी पारिवारिक दोष और विवाह संबंधित दोष दूर होते है।
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