रायपुर। आज रात को होलिका दहन के बाद कल होली खेली जाएगी। देशभर में कोरोना को साऐ के बीच रंग बरसेगा। खैर सरकार ने बढंते कोरोना संक्रमण के चलते...
रायपुर। आज रात को होलिका दहन के बाद कल होली खेली जाएगी। देशभर में कोरोना को साऐ के बीच रंग बरसेगा। खैर सरकार ने बढंते कोरोना संक्रमण के चलते होली खेलने पर पाबंदी लगा रखी है पर थोड़ी बहुत तो होली जरूर खेली जाएगी। रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है, होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती है और इसी दिन को होली खेलने के लिए मुख्य दिन माना जाता है। होली भक्ति पर आये संकट के निवारण का दिन है, इस दिन होलिका दहन अथवा होलिका दीप से पहले अग्निदेव की पूजा का विधान है। भगवान अग्नि पंचतत्वों में प्रमुख है जो सभी जीवात्माओं के शरीर में अग्नितत्व के रूप में विद्यमान रहते हुए देह की क्रिया शीलता की प्राणांतपर्यंत रक्षा करते हैं। ये सभी जीवों के लिए एक समान न्याय करते हैं। इसीलिए सभी सनातन धर्मावलम्बी वैष्णव भक्त प्रह्राद पर आये संकट टालने एवं अग्निदेव द्वारा ताप के बदले उन्हें शीतलता प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।
होलिका दहन मुहूर्त
हमारे सभी धर्मग्रंथों में होलिका दहन के लिए विधि-विधान के संबंध में एक सी बातें कही गई हैं। जैसे अग्नि प्रज्ज्वलन के समय भद्रा बीत चुकी हों, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि हो, तो यह अवधि सर्वोत्तम मानी गई है। यदि भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिए। यदि भद्रा मध्यरात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदापि नहीं करना चाहिए। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूंछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिए।
-अन्य त्योहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक
होलिका दहन का मुहूर्त किसी भी अन्य त्योहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक है, क्योंकि भद्रा सूर्यदेव की उद्दण्ड पुत्री हैं और उनकी उपस्थिति अथवा मुहूर्त में किया गया कार्य सकुशल संपन्न होने में संदेह रहता है। ब्रह्मा जी के वरदान स्वरूप इन्हें अपनी उपस्थिति में कार्य बाधा डालने से कोई नही रोक सकता।
-होलिका दहन पूजा विधि
रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है, होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती है और इसी दिन को होली खेलने के लिए मुख्य दिन माना जाता है। होलिका पूजन के दिन निर्धारित किये गये स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी घास आदि डालें। इसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। पूजा में एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बतासे, गुलाल व नारियल के साथ-साथ नई फसल के धान्य जैसे पके चने की बालियां और गेहूं की बालियां, गोबर से बनी ढाल और अन्यखिलौने भी लें ! कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटकर लोटे का शुद्ध जल व अन्य सामग्री को समर्पित कर होलिका पूजन करते हुए यह मंत्र- अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: । अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम् ।।
बोलें और पूजन के पश्च्यात अघ्र्य अवश्य दें ! इसप्रकार होलिका पूजन से घर में दु:ख-दारिद्रय का प्रवेश नहीं होता।
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