कानपुर। केडीए में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मधु शर्मा का संघर्ष बड़ी सीख देता है। पढऩे और खेलने वाली १६ साल की उम्र में ही पिता का साया उठ जाने...
कानपुर। केडीए में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मधु शर्मा का संघर्ष बड़ी सीख देता है। पढऩे और खेलने वाली १६ साल की उम्र में ही पिता का साया उठ जाने के बाद भी मधु ने हार नहीं मानी। साइकिल से अखबार और मैगजीन बेचकर छह लोगों के परिवार का पेट पाला। छोटे भाई-बहनों की खुशी के लिए खुद विवाह नहीं किया। आज भी परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। हर मुश्किल के सामने चट्टान की तरह अडिग हैं। बर्रा-7 निवासी मधु शर्मा के परिवार में पिता, माता, तीन छोटी बहनें और छोटा भाई था। केडीए कर्मचारी पिता गौरी दत्त शर्मा नौकरी के साथ ही अखबार बांटने का भी काम करते थे। सब कुछ ठीक चल रहा था। सन 1993 में पिता का अचानक निधन हो गया। इसके बाद पूरे परिवार के सामने खाने का संकट खड़ा होने लगा। राशन के कनस्तर खाली हो गए। कभी-कभी चूल्हा तक नहीं जलता था। मगर एक आग मधु के अंदर ही अंदर जल रही थी। वह थी, परिवार के लिए कुछ करने की। मधु मृतक आश्रित में नौकरी के लिए केडीए गई लेकिन इसमें देरी थी। तुरंत नौकरी न मिलते देख मधु ने पिता का अखबार बेचने का काम संभाला। पहले पिता उसे कभी-कभी साइकिल से अपने साथ ले भी जाते थे। मधु ने जब पुराने घरों में जाकर अखबार डालने की बात कही तो पता चला कि वे लोग दूसरे से अखबार लेने लगे हैं। मधु ने कुछ घरों से ही शुरुआत की और धीरे-धीरे इस काम को बढ़ाया। हालांकि छह लोगों के परिवार के लिए यह काफी नहीं था। इसलिए अखबार बेचने के बाद सेंट्रल स्टेशन जाकर दिल्ली से आने वाले अखबार, मैगजीन भी लेकर घर-घर डालने लगी। करीब दो साल बाद केडीए में नौकरी मिली, तब महज १५०० रुपये वेतन था। इसके चलते मधु ने नौकरी लगने के बाद भी कई साल तक अखबार बेचना बंद नहीं किया। भाई-बहनों को पढ़ाया। तीनों बहनों अनीता, मंजू, रानी की शादी की। मधु को एक और बड़ा आघात तब लगा, जब २०१२ में इकलौते भाई विष्णु की मौत हो गई। कुदरत की मार यहीं खत्म नहीं हुई, २०१४ में बहन अनीता का देहांत हो गया और २०१५ में मां लक्ष्मी भी साथ छोड़ गईं। उन्होंने अनीता के बेटे राजकुमार को भी पढ़ाया। वह सिविल की तैयारी कर रहा है। वहीं मंजू भी अब मायके आकर रहने लगी है।
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