देहरादून। भूतों की कहानियां तो आपने कई सुनी होंगी। कई लोगों ने उन्हें देखने का दावा भी किया है। वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की है कि भूत होते...
देहरादून। भूतों की कहानियां तो आपने कई सुनी होंगी। कई लोगों ने उन्हें देखने का दावा भी किया है। वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की है कि भूत होते हैं। देश-विदेश में कई डरावनी फिल्में भी बन चुकी हैं, जिन्हें देखकर लोग डरे बिना नहीं रह सकते। ऐसी ही एक कहानी के बारे में हम आपको आज बता रहे हैं। उत्तराखंड राज्य में एक छोटी सी जगह है लैंसडौन जो छोटी होने के अलावा बहुत ही खूबसूरत है। दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर लैंसडौन वीकएंड पर आने वाले लोगों का फेवरिट अड्डा है। यह जगह काफी शांत है और शहर के शोर-शराबे से भी काफी दूर है। शिमला और मसूरी घूम-घूमकर बोर हो चुके पर्यटक अब लैंसडौन आने लगे हैं। यह जगह ऐसी है कि यहां पर रात के 8:30 बजते ही सन्नाटा पसरने लगता है। उत्तराखंड में कई कहानियां बहुत समय से मशहूर हैं और इन्हीं कुछ कहानियों में एक कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है। सिर कटे भूत की कहानी। ये कहानी है एक सिर कटे भूत की जो लैंसडौन की सड़कों पर घूमता है। लैंसडौन में यह कहानी पिछले कई दशकों से हर घर में सुनाई जाती है। कहा जाता है कि आधी रात को यहां के कैंटोनमेंट एरिया में एक सिर कटा अंग्रेज अपने घोड़े पर घूमता है। वो सिर्फ घूमता ही नहीं बल्कि यहां की चौकीदारी भी करता है। कहानियों के मुताबिक इस अंग्रेज का ये भूत यहां रात के समय ड्यूटी करने वाले सिपाहियों पर नजर रखता है, इतना ही नहीं अगर कोई सोता हुआ पाया गया तो उसकी तो खैर नहीं होती है। कई सिपाहियों की मानें तो उन्हें रात में अजीब-अजीब आवाजें तक सुनाई देती हैं।
ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर का भूत
ऐसे कई रिटायर्ड सिपाही हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि उन्होंने इस भूत को महसूस किया है। ड्यूटी में लापरवाही बरतने पर भूत सिपाहियों के सिर पर मारता है। कई लोग ये भी कहते हैं कि लैंसडौन में अपराध भी इसी वजह से नहीं होता। सवाल ये है कि आखिर वो अंग्रेज कौन है। कहते हैं कि ये भूत एक ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर डब्लूएच वार्डेल का है। वार्डेल सन 1893 में भारत आया था। यहां पर उन्हें लैंसडौन कैंट का कमांडिंग ऑफिसर बनाया गया था।
प्रथम विश्व युद्ध में हुई मौत
सन 1901-02 में वो अफ्रीका में तैनात थे और फिर भारत वापस आ गए। जिस समय प्रथम विश्व युद्ध हुआ, वो लैंसडौन में ही ड्यूटी कर रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान डब्लू एच। वार्डेल फ्रांस में जर्मनी के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए। भारतीय सैनिक दरबान सिंह नेगी के साथ लडऩे वाले इस ऑफिसर की लाश कभी नहीं मिली थी। उनकी मौत के बाद ब्रिटिश अखबारों में लिखा गया कि वो एक शेर की तरह लड़े और मारे गए। कुछ लोग कहते हैं कि मौत से पहले लैंसडौन में पोस्टिंग होने और उनके शव का सही तरह से अंतिम संस्कार न होने की वजह से 100 साल के बाद भी वार्डेल की आत्मा कैंट में घूमती है।
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