abernews अबेर न्यूज। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। इस दिवस हम अपने गुरु की पूजा करते हैं. पूरे भारत द...
abernews अबेर न्यूज। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। इस दिवस हम अपने गुरु की पूजा करते हैं. पूरे भारत देश में यह पर्व बड़ी श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है. इस दिन न सिर्फ अपने गुरु की, बल्कि साथ ही परिवार में जो भी अपने से बड़ा है उनको भी गुरू मानकर पूजा करनी चाहिए. जिसमें हमारे माता-पिता, दादा-दादी आदि हैं।
इस दुनिया में गुरु की कृपा से छात्र को विद्या आती है और उसका अज्ञान तथा जीवन का अन्धकार दूर होता है. किसी भी गुरु का आशीर्वाद शिष्य के लिए कल्याणकारी और मंगलकारी करने वाला होता है. किसी भी इंसान को इस संसार की सम्पूर्ण विद्याएं गुरु कृपा से प्राप्त होती हैं. गुरु बनाने तथा उनसे मन्त्र प्राप्त करने के लिए गुरू पूर्णिमा का दिन सबसे उत्तम माना गया है. इस दिन अपने बढ़े अथवा गुरुजनों सेवा करने का बहुत महत्व व लाभ होता है।
इस त्यौहार को सम्मान और श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए. गुरू पूर्णिमा को प्रात:काल उठकर सवसे पहले नित्यकर्म कर स्नान करना चाहिए और उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए एवं गुरूओं की पूजा-अर्चना करना चाहिए. गुरू वेद व्यास के चित्र को सुगन्धित फूल और माला चढ़ाकर सबसे पहले अपने गुरुदेव के पास जाना चाहिए।
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अपने अपने गुरूओं को ऊंचे सुसज्जित आसन पर बिठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए. फिर वस्त्र, फूल, फल और माला अर्पण कर कुछ दक्षिणा भेंट कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए. आपको बता दें कि पौराणिक काल से ही गुरू पूर्णिमा का महत्व है. महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था. वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे.
सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास तीनों कालों के ज्ञाता थे. वह ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत अनेक साहित्यों की रचना करने वाले और ज्ञाता थे।
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