नई दिल्ली। तालिबान की वापसी से महिलाएं सबसे ज्यादा खौफजदा हैं, क्योंकि बीते दिनों कुछ प्रांतों पर कब्जे के बाद से ही उसके नेताओं ने अपना रंग...
नई दिल्ली। तालिबान की वापसी से महिलाएं सबसे ज्यादा खौफजदा हैं, क्योंकि बीते दिनों कुछ प्रांतों पर कब्जे के बाद से ही उसके नेताओं ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। उन्होंने जुलाई की शुरुआत में बदख्शां और तखर स्थानीय धार्मिक नेताओं को तालिबान लड़ाकों के साथ निकाह के लिए 15 साल से बड़ी लड़कियां और 45 साल से कम उम्र की विधवाओं की फेहरिस्त देने का हुक्म दिया था। अगर यह निकाह हुए तो इन महिलाओं को पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाकर फिर से इस्लामी तालीम दी जाएगी। मानवाधिकार वादियों का कहना है कि अफगानिस्तान में महिलाओं को यौन दासता में धकेलने की इस तालिबानी कवायद से दुनिया को पहले की तरह नजरें नहीं फेरनी चाहिए।
महिलाओं को लेकर भाग रहे परिवार
मैकगिल यूनिवर्सिटी टोरंटो में विधि और मानवाधिकार की एसोसिएट प्रोफेसर वृंदा नारायण का कहना है काबुल पहुंचने से पहले ही इस तरह के तालिबानी आदेश ने देश की महिलाओं-बेटियों और उनके परिवारों में बड़ा गहरा खौफ पैदा कर दिया है। आलम यह है कि पिछले 3 महीनों में ही करीब 9 लाख लोग विस्थापित हुए हैं।
आंखों में तैर रहा 1996 का भयावह मंजर
तालिबान का ताजा आदेश सख्त चेतावनी है कि आने वाले दिनों में अफगानिस्तान का भविष्य क्या है। साथ ही 1996-2001 में उसके क्रूर शासन की भी यादें ताजा करता है। जब महिलाओं के अधिकारों पर तरह-तरह के जुल्म किए गए। उन्हें शिक्षा से दूर रखा गया, बुर्का पहनने पर मजबूर किया गया और बिना पुरुष संरक्षक के घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई।
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