नई दिल्ली। किस्से-कहानियों में अक्सर आपने भगवान परशुराम और उनके फरसे के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि वो फरसा आज भी धरती प...
नई दिल्ली। किस्से-कहानियों में अक्सर आपने भगवान परशुराम और उनके फरसे के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि वो फरसा आज भी धरती पर मौजूद है। जी हां, दावा किया जाता है कि एक पहाड़ी पर स्थित एक मंदिर में भगवान परशुराम का फरसा गड़ा है, जिसे खुद उन्होंने ही गाड़ा था। इस फरसे से जुड़ी एक बेहद ही रहस्यमय कहानी है, जिसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे। आज हम आपको इसी कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आपको हैरान कर देगी। दरअसल, झारखंड की राजधानी रांची से करीब 150 किलोमीटर दूर गुमला जिले में एक पहाड़ी है, जहां स्थित है टांगीनाथ धाम। इसी धाम के एक मंदिर में मौजूद है भगवान परशुराम का फरसा। वैसे तो यह फरसा खुले आसमान के नीचे है, लेकिन आज तक इसमें कभी जंग नहीं लगा। यह किसी रहस्य से कम नहीं है कि हजारों साल बाद भी यह पूरी तरह सुरक्षित है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस फरसे से छेड़छाड़ की कोशिश करता है, उसे इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ता है। कहते हैं कि एक बार लोहार जनजाति के कुछ लोगों ने फरसे को जमीन से उखाड़ कर ले जाने की कोशिश की थी, लेकिन जब फरसा नहीं उखड़ा तो उन्होंने उसके ऊपरी भाग को काट दिया। हालांकि, उसे भी वो ले जाने में नाकाम रहे। कहा जाता है कि इस घटना के बाद आसपास रहने वाले लोहार जनजाति के लोगों की एक-एक मौत होने लगी, जिसके बाद वो इलाका ही छोड़कर चले गए। आज भी इस जनजाति के लोग आसपास के गांवों में रहने से घबराते हैं। भगवान परशुराम के टांगीनाथ धाम आने और वहां अपना फरसा जमीन में गाडऩे के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। मान्यता है कि त्रेतायुग में जनकपुर में माता सीता के स्वयंवर के दौरान, जब भगवान राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा, तो उसकी भयंकर ध्वनि सुनकर परशुराम जी गुस्से में जनकपुर पहुंच गए और उन्होंने भगवान राम और लक्ष्मण को पहचाने बिना ही उन्हें खूब बुरा-भला कहा, लेकिन बाद में जब उन्हें ये अहसास हुआ कि राम जी भगवान विष्णु के अवतार हैं, तो वो बहुत लज्जित हुए और अपने किए का प्रायश्चित करने के लिए घने जंगलों के बीच एक पहाड़ पर चले गए। वहीं पर उन्होंने अपना फरसा गाड़ दिया और तपस्या करने लगे। उसी जगह को आज टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि फरसे के अलावा भगवान परशुराम के पदचिह्न भी वहां मौजूद हैं।
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