aber news । "हरेली" ऐसा त्यौहार जो हरियाली का प्रतीक है जिसे पुरे छ.ग. में मनाया जाता है यह त्यौहार ग्रामीण जन (मुलनिवासी) बड़े धु...
aber news । "हरेली" ऐसा त्यौहार जो हरियाली का प्रतीक है जिसे पुरे छ.ग. में मनाया जाता है यह त्यौहार ग्रामीण जन (मुलनिवासी) बड़े धुमधाम से मनाते हैं
जानकारी के अनुसार हरेली श्रावण मास में आने वाली त्यौहार है
किसान बताते हैं वे इस दिन अपने मवेशियों और कृषि यंत्रो की पुजा करते हैं
हरेली के दिन ग्रामीण जन गोठान जाते हैं सुबह के समय और अपने साथ थाली में चावल,मिर्च,नमक चरवाहे के लिए ले जाते हैं उसी के साथ गुथा हुआ आटा और खम्हार पान (ग्रामीण भाषा) ले जाते हैं उस गुथे हुए आटे की गोली बनाकर खम्हार पान(पान=पत्र) के बीच रख हल्का बांध देते हैं फिर अपने गाय,बैल,भैंस को खिलाते हैं फिर घर वापस लौटते समय चरवाहों द्वारा सुदुर जंगल से लायी हुई वनौषधि ( *इस वनौषधि को अच्छे से साफ कर एक मिट्टी के घड़े मे लेकर पानी डालकर रातभर उबालते हैं फिर अच्छी तरह उबल जाने से औषधि तैयार हो जाती है* )को ग्रामीण जनों को प्रसाद के रुप में देते हैं
लेकिन यहाँ के आदिवासी मुलनिवासीयों के अनुसार ग्रामीणों में मान्यता है - हरेली के दिन बुरी शक्तियाँ प्रबल होती है उसी से बचने के लिए वो वनौषधि लायी जाती है जिसे सिर्फ चरवाहे ही लाते हैं उपवास रख कर साल में एक ही बार फिर वनौषधि को पुरी रात जग कर चरवाहे निगरानी करते हुए वनौषधि को तैयार करते हैं फिर सुबह गोठान में प्रत्येक ग्रामीणों को बाँट दिया जाता है
चूँकि विज्ञान के युग में ऐसी बातें निरर्थक लगती हैं
डाॅ गुलशन कुमार सिन्हा आयुर्वेद चिकित्सक है इस संबंध में और जानकारी देते हुए बताते हैं वर्षा ऋतु में श्रावण मास आता है और इस मास में वर्षा होती है और बड़ी मात्रा में हो तो बाढ़ भी आती है । इसके कारण जीवाणु,विषाणु,बैक्टिरिया सक्रिय हो जाते हैं कहीं कहीं गंदगी बाढ़ के कारण या पानी का जमावड़ा हो जाता है जिससे महामारी फैलने का खतरा बना रहता है जिससे बचने के लिए हम चिकित्सक से मिलते हैं या सरकारें स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाती है।
लेकिन पहले ये सुविधाएँ नहीं थी तो लोग किसी महामारी को बुरी शक्तियाँ या दैविय प्रकोप मानते थे और सैकड़ो हजारों की संख्या में लोगों की मृत्यु हो जाती थी इसी से बचने के लिए ग्रामीण वनौषधि खाते थे और आज भी खाते हैं हम और आप जिसे सिर्फ ये जानते हैं ये वनौषधि है हरेली के दिन ही खाया जाता है
आयुर्वेद में उस वनौषधि का नाम शतावर है जिसका लैटिन नाम एस्पेरेगस रेसिमोसस है
इससे ये ज्ञात होता है हमारे पुर्वज कितने वैज्ञानिक सोच के थे जो जानते थे यह एक औषधि है और जो वनौषधि उन्हें खाने दी जाती थी वो आस्था के साथ साथ बुरी शक्तियों का नाशक जान सभी ग्रामीणजन इसे ग्रहण करते थे और अभी भी करते हैं
हम उस समय का इसे स्वास्थ्य कार्यक्रम मान सकते हैं
जिसमें एक ही दिन में सैंकड़ो ग्रामीणों को औषधि खिलायी जाती थी
शतावरी एक बहुमुल्य औषधि है।
*शतावर के फायदे*-
यह शारिरीक क्षीणता दुर करता है
अनिद्रा दुर करता है
रात की रतौंधी मे उपयोगी
पेशाब संबंधी बिमारी में
महिलाओं की स्तन संबंधी समस्या दुध न आना
पुरुषों मे बलवर्धक
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है
यह पौष्टिक औषधि है
जो नहीं खाये हैं इसबार हरेली में जरुर खायें।
सभी गांव में एक बैगा होता है जो उस दिन गांव के सभी घरों में जाकर नीम और भल्लातक की टहनियाँ पत्तों के साथ घर के प्रमुख द्वार और आँगन में लगाते हैं
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में नीम और भल्लातक का बड़ा ही औषधिय महत्व है
*नीम* :- *Azadirachta indica*
नीम का वानस्पतिक नाम इसके संस्कृत भाषा के निम्ब से व्युत्पन्न है
नीम स्वाद में कड़वा होता है यह एक औषधीय पेड़ है इसे आयुर्वेद में बहुत ही उपयोगी वृक्ष माना गया है
- यह मधुमेह में अत्यंत लाभकारी है
- नीम की छाल का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों और व्रण के निवारण में सहायक है
- नीम का दातुन करने से दांत और मसुड़े स्वस्थ रहते हैं
- नीम की पत्तियाँ चबाने से रक्तशोधन होता है और त्वचा कांतिवान होती है
- चर्म रोग दुर करने में सहायक होती है इसकी पत्ती को पानी में उबालकर नहाने से लाभ होता है खासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है उसके विषाणु को फैलने नही देते
- नीम के तैल का नस्य करने से शिरोरोग में लाभ मिलता है तथा बालों की समस्या (बाल झड़ना) से भी निजात मिलती है।
*भल्लातक*:-
*Semecarpus anacardium* (लैटिन नाम)
इसे छत्तीसगढ़ में *भेलवा* कहा जाता है
इसका काजु से निकट संबंध है।
यहाँ के ग्रामीण जन इसे मुख्य रुप से हाथ पैर की माँसपेशियों के दर्द से निजात पाने हेतु प्रयोग करते हैं, इसके फल को गर्म कर इसमें सुई(सुजा) चुभोई जाती है इससे उसका तैल निकल आता है जिसे उसे सुई से हाथ पैर के तलवों और ऐड़ी पर लगाया जाता है इसका उपयोग अत्यंत सावधानी से करना पड़ता है क्योंकि तलवों के अलावा अन्यत्र शरीर पर लग जाये तो त्वचा पर फफोले आ सकते हैं इसकी तासिर गर्म होती है आयुर्वेद के अनुसार यह फल मधुर और तिक्त रस से युक्त कड़वे स्वाद वाला होता है।
- कृमिरोग नाशक होता है
- यौन रोगों में लाभकारी होता है
- भूख बढ़ाने में सहायक होता है
- त्वचा संबंधी विकार को दुर करने में सहायक होता है।
इससे हम ये मान सकते हैं हरेली एक त्यौहार ही नहीं ये हमारे पुर्वजों के द्वारा शुरु की गयी पहली स्वास्थ्य अभियान या कार्यक्रम है।
जिसका केवल एक ही मुख्य उद्देश्य रहा होगा रोगमुक्त वो चाहे रोगी का रोग हो या निरोगी को रोग से दुर रखना ।
इस तरह पहले लोग अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते थे जो आज भी मान्य है ।
(हम अण्डमान निकोबार में रह रहे उन आदिमानव से समझ सकते हैं जो आज भी वैसे ही जीवन जीते हैं और सांसारिक रोगों से दुर हैं)
ग्रामीणों के अनुसार इस तरह से सुबह औषधी ग्रहण के बाद दोपहर में कृषि यंत्र की पुजा फिर शाम में खेल का आयोजन ऐसे मनाते हैं छत्तीसगढ़िया लोग हरेली।
डाॅ गुलशन कुमार सिन्हा
लेखक आयुर्वेद चिकित्सक एवं जानकार है,
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