रायपुर। छत्तीसगढ़ की महिलाओं द्वारा वर्षा ऋतु में रखा जाने वाला व्रत(उपवास) जिसे कमरछठ कहा जाता है। कमरछठ के बारे में आयुर्वेद चिकित्सक एवं ज...
रायपुर। छत्तीसगढ़ की महिलाओं द्वारा वर्षा ऋतु में रखा जाने वाला व्रत(उपवास) जिसे कमरछठ कहा जाता है। कमरछठ के बारे में आयुर्वेद चिकित्सक एवं जानकार डॉ गुलशन कुमार सिन्हा ने बताया कि कमरछठ व्रत की मान्यता है कि महिलाएं(माताएं व बहनें) इस उपवास को अपनी संतानों के लिए रखती हैं। वे बताती हैं कि जिनकी शादी नयी-नयी हुई है वे संतान प्राप्ति के लिए और जिनकी संतानें हंै वे दीघार्यु के लिए। उन्होंने आगे और बताया इस दिन वे दिन भर निर्जला उपवास रखती हंै। सुबह के समय महुआ की लकड़ी का दातुन बनाकर दांत साफ करती हैं और महुआ की खरी से ही स्नान करती हैं। वे उस दिन हल(नांगर) से जुते हुए मार्ग पर नहीं चलती है। उपवास की सामग्री बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि महुआ के पत्ते की थाली(पतरी),महुआ की लकड़ी का चम्मच,महुआ का तेल(टोरी तेल)उपयोग में लाया जाता है तथा लाई,धान,महुआ के सूखे फूल, बटर, गेहूं, चना का भी विशेष महत्व होना बताया। उनके अनुसार गांव में किसी के घर सगरी(कुंड) खोदा जाता है वहां पर फिर बगीचा रुपी कुछ घास और पौधे लगाते हैं उनमें कासी(घास की प्रजाति),अपामार्ग(चिड़चिड़ा),बेर,आम,चिरईया को किनारे में लगाया जाता है। छग की ग्रामीण महिलाओं की मान्यता है कि उपवास वाले दिन कासी( कुश घास) को अंगूठे और अनामिका अंगुली के बीच रखकर एक ही बार में बंध(गठान ग्रामीण भाषा) बांधना होता है बिना अंगुली हटाये। फिर उन्होंने बताया उपवास तोड़ने के बाद पसहर चावल और 6 प्रकार की भाजी तथा भैंस के दूध,दही का सेवन किया जाता है।
6 भाजियों के नाम- कद्दु भाजी,जरी भाजी, अमारी(खट्टा)भाजी, चेंच भाजी, मुनगा भाजी,कांदा भाजी
इन सारी विविधताओं के साथ कमरछठ उपवास पूर्ण करती हैं।
डॉ सिन्हा बताते हैं कि यह उपवास संतानों के लिए रखा जाता है तो इन्होंने इसके कारण को जानने की कोशिश की तो पता चला कि यह उपवास पूरी तरह वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है या यूँ कहें कि हमारे पूर्वजों द्वारा सैंकड़ो वर्ष पूर्व शुरू की गई महिला स्वास्थ्य मिशन है जिसे परम्पराओं का अमली-जामा पहनाया गया ताकि ये परम्परा विलुप्त न हो और वर्षों तक आस्था(परम्परा) की भांति चलता रहे हम देखते हैं किसी चीज को आप परम्पराओं या आस्था से जोड़ दे तो लोग उसे सहज स्वीकारते हैं तो हमारे पूर्वजों का भी यही मत रहा होगा। पहले लड़कियों की शादी बहुत कम उम्र में हो जाती थी या बाल्यावस्था में ही जिससे शरीर परिपक्व नहीं हो पाता था। तो महिलाओं को शारिरीक समस्याएं आती रहीं होंगी। कमरछठ के दिन महुआ का दातुन किया जाता है इससे दांतों से खून और मुंह से दुर्गन्ध नहीं आती। इस दिन पूरी तरह से महुआ का ही उपयोग किया जाता है। महुआ का मासिक गड़बड़ी, दूध बढ़ाने के लिए, दर्दनिवारक तथा चर्म रोग आदि में उपयोग किया जाता है।
काशी बांधने की क्रिया का वैज्ञानिक महत्व
उपवास के दिन जो काशी बांधने की क्रिया होती है उसका बहुत ही बड़ा वैज्ञानिक महत्व है हमारी हथेलियों में एक्युप्रेशर पाइंट होती है जब वो जगह दबती है तो शरीर में विभिन्न क्रियाएं होती है। हमारे अंगुठे में ऊपर मस्तिष्क का तथा उसके नीचे पीयूष ग्रंथि का केन्द्र होता है। जब हम पृथ्वी मुद्रा( हठयोग के रचियता महर्षि घेरण्ड के अनुसार हथेली के अंगूठे और अनामिका अंगुली को जोड़ने से जो मुद्रा बनती है उसे पृथ्वी मुद्रा कहते हैं) में कासी(घास) को पकड़ कर बांधते हैं तो अनामिका अंगुली से अंगुठे का पीयूष ग्रंथि का पाइंट दबता है भले ही हमें पता नहीं चलता हमें लगता है हम सिर्फ एक कासी को बांध रहे हैं पर चिकित्सकीय दृष्टि से देखें तो हम बार बार पीयूष ग्रंथि के पॉइंट को दबाते रहते हैं।वैसे भी यह देश कृषि प्रधान रहा है और छ.ग. कृषि प्रधान राज्य तो पहले के समय में अधिकांशत: औरतें खेत काम करने जाया करती थीं और यह घास खेत में पाया जाता है तो कमरछठ उपवास से महीनें दिन पूर्व से बांधने का अभ्यास करती रहती थी जिससे कमरछठ उपवास के दिन बांध सके वे परम्परा का हिस्सा समझ यह करती थी लेकिन बार बार पीयूष ग्रंथि का पॉइंट दबने से हार्मोन स्त्रावित होता रहा।
पीयूष ग्रंथि से स्त्रावित होने वाले हार्मोन- एसीटीएस-2,टीएसएच, प्रोलक्टिन-4, जीएच-5, एफएसएच और एलएच। जब ये हार्मोन स्त्रावित होती है तो महिलाएं जो कम उम्र की है जीएस्च हार्मोन के कारण वृद्धि प्रक्रिया सक्रिय होती है। टीएसएच हार्मोन यह हार्मोन थायराइड को नियंत्रित रखती है। एसीटीसी यह हार्मोन एड्रिनल ग्रंथि को नियंत्रित करती है। एफएसएच यह हार्मोन ओवरी में अण्डे को विकसित करने के लिए उत्तेजित करता है। एलएच हार्मोन अण्डे को ओवरी से फॉलिक एसिड को बाहर निकलवाता है। अर्थात यह हार्मोन संन्तानोत्पत्ति में सहायक होता है इसलिए प्राचीन मान्यताओं में कमरछठ को संतानोत्पत्ति या संतान के लिए जोड़ कर देखा जाता रहा है। अब संध्याकाल में उपवास तोड़ने के बाद पसहर चावल का सेवन करते हैं इसमें एन्टी-आक्सीडेन्ट भरपुर मात्रा में होता है जिसे एंथोसाइएनिन्स भी कहते है,यह शरीर में होने वाली जलन,एलर्जी, कैंसर के खतरे कम और वजन को सही बनाये रखने में मदद करता है।
प्रकार की भाजियाँ:-
1. मुनगा भाजी:- यह अपने आप में एक पुर्णत: औषधीय पौधा है इसके पत्तों को ही भाजी कहते हैं, इसकी पत्तियों में प्रोटीन के साथ साथ विटामिन बी6, विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन ई। इतना ही नहीं इसमें आयरन, मैग्निशियम, पोटैशियम और जिंक जैसे मिनरल पाये जाते हैं एनिमिया को ठीक करने में मुनगा कारगर माना गया है
2. जरी भाजी:- सबसे अधिक ग्रीन ब्लड सेल्स इसी भाजी में पाया जाता है।
3. अमारी(खट्टा) भाजी:- यह पाचन में सहायक है पेट साफ करने के लिए फायदेमंद है(यह सुपाच्य है)।
4. कद्दु भाजी:- बाल झड़ने को रोकने में उपयोगी।
5. कांदा भाजी:-यह चर्म रोग में लाभदायक है।
6. चेंच भाजी:- इसमें प्रोटीन 8.7% और काबोर्हाइड्रेट 66.04% पाया जाता है। पसहर चावल और भाजियों के सेवन के साथ साथ भैंस की दही और दुध का भी सेवन किया जाता है।भैंस का दुध भुखे व्यक्ति में लाभकारी है इसमें बहुत से मिनरल्स पाये जाते हैं। इसी प्रकार कमरछठ उपवास होता है जो पूरी तरह महिलाओं के स्वास्थ्य के इर्द गिर्द घुमती है। अत: हम यह मान सकते हैं कि यह एक उपवास ही नही प्राचीन महिला स्वास्थय सुरक्षा मिशन है।जिसे कम उम्र की महिलाओं के स्वास्थय का चिंतन तथा वयस्क महिलाओं के शरीर में होने वाली विविध समस्याओं को ध्यान में रख कर बनाया गया।
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