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ये है 21वीं सदी के भारत के ऐसे गांव, जहां पीने के लिए पानी नहीं, स्वास्थ्य सुविधाएं नदारद

रायपुर/रांची। आजादी के 7 दशक गुजर जाने के बाद भी भारत के कुछ ऐसे इलाके हैं जहां अभी भी विकास की किरण नहीं पहुंची है। इन इलाकों में पडऩे वाले...

रायपुर/रांची। आजादी के 7 दशक गुजर जाने के बाद भी भारत के कुछ ऐसे इलाके हैं जहां अभी भी विकास की किरण नहीं पहुंची है। इन इलाकों में पडऩे वाले गांवों में न तो पीने के लिए पानी की कोई व्यवस्था है और न ही एम्बुलेंस जाने का रास्ता। अगर कोई बीमार पड़ जाए तो ऐसा लगता है जैसे सिर पर आसमान गिर गया हो। इनमें छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ ऐसे गांव शामिल हैं जहां लोग नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। न पीने के लिए पानी है न बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं हैं।
छत्तीसगढ़ -जान जोखिम में डालकर नाला पार करते हैं ग्रामीण
भानुप्रतापपुर जिले के परवी होते हुए खड़का, भुरका जाने वाले मार्ग में तीन नालों पर पुल-पुलिया नहीं से क्षेत्र के लोग बेहद परेशान हैं। इसके चलते पंचायत मुख्यालय परवी आने के लिए भी उन्हें 7 किमी के बजाय 35 किमी का सफर करना पड़ रहा है। क्षेत्र लोग इन नालों पर पुल-पुलिया बनाने की मांग पिछले 20 वर्षों से करते आ रहे हैं, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ग्रामीण तुलसीराम उइके, राजेश मंडावी ने बताया भुरका, खड़का, जलहुर के लोगों को पंचायत मुख्यालय परवी आने के लिए लोगों को नाला को पार कर आना होता है, लेकिन बारिश के दिनों में नाले बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाने से लोगों को जान जोखिम में डालना पड़ता है। लोगों को बारिश के दिनों में पंचायत मुख्यालय जो महज 7 किमी है, वहां जाने के लिए मजबूरी में 35 किमी का सफर करना पड़ता है। पंचायत मुख्यालय जाने लोगों को भानबेड़ा होते हुए भानुप्रतापपुर, केंवटी पहुंचकर ही पंचायत मुख्यालय परवी पहुंचते हैं। इससे आर्थिक मानसिक रूप से परेशानी के साथ समय की भी बर्बादी होती है। ग्रामीणों ने कहा नाले में पुलिया निर्माण की मांग 20 वर्षों से कर रहे हैं। इसके लिए विधायक, सांसद, मंत्री से लेकर अधिकारियों तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन मांग पूरी नहीं हो पाई।
बारिश होने पर छात्रों की हो जाती है अघोषित छुट्टी
क्षेत्र के लगभग 40 बच्चों की बारिश के दिनों में अघोषित छुट्टी हो जाती है। मंगहर्रा नाला के उस पार जलहूर, खड़का, भुरका क्षेत्र में केवल प्राथमिक स्तर की विद्यालय संचालित है। माध्यमिक शाला और हाईस्कूल, हायर सेकेंडरी स्कूल पढऩे के लिए बच्चों को इन मार्ग से होकर तीनों नाला पार कर आना होता है। 
झारखंड: नामकुम प्रखंड में आने वाला गढ़ा टोली भी ऐसा ही गांव है, जहां पीने के पानी और अस्पाताल के अलावा कहीं आने-जाने के लिए ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस गांव का नाम ही शायद इस गांव के लिए अभिशाप बन गया है, क्योंकि इस गांव में जाने के लिए आपको ऐसे रास्तों से होकर गुजरना होगा जो गड्ढे से होकर ही जाता है. गांव को जोडऩे वाले रास्ते में नदी पड़ती है. इसपर एक अदद पुल अब तक नहीं बन पाया है। नामकुम प्रखंड के सिल्वे पंचायत के गढ़ा टोली गांव की आबादी करीब 800 है और गांव में करीब 200 घर हैं. बरसात के मौसम में इस गांव के 800 लोग बाहरी दुनिया से कट जाते हैं। गांव से बाहर निकलने का एक ही रास्ता है और वो नदी से होकर गुजरता है। इस पर पुल बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश ग्रामीणों ने की, लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो सका है। ग्रामीणों ने 5 विधायकों का कार्यकाल देखा है और सभी विधायकों के पास जाकर पुल बनाने की गुहार लगा चुके हैं. इसके बावजूद ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन ही मिला है। बीडीओ हो या सीओ या फिर उपायुक्त या सांसद हर जगह आवेदन देकर थक-हार चुके हैं।
बीमार पड़े तो खाट पर लेकर 2 किलोमीटर चलना होता है पैदल
ग्रामीणों का कहना है कि अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो उसे खटिया पर लाद कर गांव से 2 किलोमीटर दूर तक ले जाना पड़ता है. उसके बाद ही वाहन मिल पाता है. इस समस्या को देखते हुए नदी का एक मुहाना जो दूसरे जगहों की अपेक्षा पतली जगह से होकर बहती है. ग्रामीणों ने श्रम दान कर एक बांस की चचड़ी का पुल बनाया है, जिससे लोग नदी पार कर पाते हैं. हालांकि, बारिश के मौसम में वो बांस की चचड़ी भी ग्रामीणों के काम नहीं आती है, क्योंकि नदी का पानी उसके ऊपर से बहने लगता है।
गांव में हैंडपंप तक नहीं
इस गांव की परेशानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां आज भी एक हैंडपंप तक मौजूद नहीं है. लोग कुआं का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. कुएं में तालाब का गंदा पानी आ जाता है, जिस कारण ग्रामीणों के बीमार पडऩे की आशंका काफी ज्यादा होती है. गांव वालों का कहना है कि अगर एक पुल बन जाए तो शायद उनकी समस्या काफी हद तक कम हो जाएगी।

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