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नही थम रहा कई वर्षो से जारी मजदूरों किसानों का पलायन, कोरोनाकाल के त्रासदी के बाद सबसे बडी समस्या बनकर उभरा था प्रवासी मजदूरों की समस्या

सत्यनारायण पटेल ... भाटापारा । शासन प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद अंचल के गांवो से मजदूरों का रोजगार की तलाश में पलायन करने का सिलसिला ज...


सत्यनारायण पटेल ...
भाटापारा । शासन प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद अंचल के गांवो से मजदूरों का रोजगार की तलाश में पलायन करने का सिलसिला जारी है। क्षेत्र में रोजगार के साधन काफी कम है सरकारी स्तर पर सिर्फ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना ही एकमात्र मजदूरी का साधन है लेकिन समस्या यह है कि मनरेगा में भी सभी मजदूरों को रोजगार मिल सके मुश्किल भरा काम है। मजदूरों को 100 दिन की रोजगार देने की बात सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। जिसके चलते रोजगार की तलाश में मजदूर दलालों के झांसे में आकर अन्य प्रांत जाते भाटापारा के रेलवे स्टेशन पर पलायन धारी मजदूरों कोआसानी से देखा जा सकता है। क्षेत्र के आस पास  गांवो से मजदूरों को पलायन कराने के लिए मजदूर दलाल, लंबे समय से सक्रिय है जो गांव गांव में घूम कर एडवांस पैसा दिया जाता है। रुपए बांटने के पश्चात सांठगांठ कर मजदूरों को गाड़ियों में भरकर अन्य प्रांत ले जाने रेलवे स्टेशन भाटापारा पहूंच जाते हैं। दरअसल इन दलालों को इस धंधे में खासा कमीशन मिल जाता है जिसे वह भी मालामाल हो रहे हैं। क्षेत्र में लंबे समय से मजदूर दलाल सक्रिय हैं जानकारी होने के बावजूद भी इन मजदूर दलालों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं होने से मजदूर दलाल बेधड़क होकर मजदूरों को आसानी से अन्य प्रांत ले जाते है।


पलायन कर जाने वाले ग्राम लवन के वेदराम यादव ने रेल्वे स्टेशन मे ट्रेन इंतजार कर रहा था पूछे जाने पर बताया की हम कमाने खाने नागपुर के कामठी जा रहे है जहाँ पर्याप्त रोजगार मिलने का संभावना रहता है वही बलौदाबाजार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ग्राम डोंगरी के रामकुमार वर्मा ने उत्तर प्रदेश मकान बनाने से जुडे कार्य के लिये जा रहे है 

श्रम आयोग के सदस्य आलोक मिश्रा ने कहा की जो कमाने खाने के लिये पलायन के आदि है वही पलायन कर रहे भूपेश बघेल सरकार के राज्य मे पलायन रूका है ၊

जिले मे कृषि क्षेत्र विघटन  एक और गंभीर खतरे की ओर भी ध्यान खींचा जा रहा है । वह यह है कि बेरोकटोक औद्योगीकरण से उपलब्ध कृषि भूमि की लगातार कमी होते रहना। अब छत्तीसगढ़ देश के 20 प्रतिशत लौह इस्पात व 10 प्रतिशत सीमेंट उत्पादक प्रदेश बन गया है। किंतु किस कीमत पर? ।  जबकि जिले  व आसपास के ग्रामीणों क्षेत्र के  चारों ओर उद्योगों के प्रदूषण के घेरे में किसानों को  अपने भाग्य पर जीना होगा। रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने 2002-03 में यह संकेत दिया था कि यदि वायु व जल प्रदूषण रोका नहीं गया तो अगले दस वर्षों में रायपुर के आसपास करीब एक लाख एकड़ भूमि बंजर भूमि में बदल जाएगा। उद्योगों में रोजगार मिलने का लालीपॉप दिखाया जा रहा है। किंतु प्रदेश में लगभग 100 स्पंज आयन प्लांट जो ग्रामीण क्षेत्रों में ही लगाए गए हैं, उसमें रोजगार नाम मात्र का है। विगत 20 सालों मे  जिले के मात्र कुछ ही  स्थानीय लोगों को वहां के उद्योगों में रोजगार मिले हैं।

प्रवासी मजदूर बनने का एक कारण और भी है।  लगभग अधिकतर आदिवासी परिवार भी अपने गांव, घर, आंगन, खेत व पशुधन ये सब कुछ छोड़कर राज्य के सीमावर्ती अन्य राज्यों में चले गए हैं तथा वहां प्रवासी मजदूर के रूप में अमानुषिक जिंदगी बिताने को मजबूर हैं।  छत्तीसगढ़ के प्रवासी मजदूरों के समस्याओं का समाधान संबंधित श्रम कानून का कठोरता से अमल से भी नहीं हो पाएगा। राज्य द्वारा अपनाए जा रहे उदार आर्थिक नीतियों के अनुपालन से भी इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।

फिर उपाय क्या है?

1. सबसे पहले चाहिए राज्य सरकार, जनप्रतिनिधि व राज्यनेताओं में दृढ़ इच्छाशक्ति- जिसका सर्वथा अभाव है।

2. प्रवासी मजदूरों को संगठित किया जाना होगा। यह काम संगठित क्षेत्र के ट्रेड यूनियनों, खेत मजदूर संगठनों, एनजीओ व अन्य सामाजिक संस्थानों तथा राजनीतिक पार्टियों के सहयोग से ही किया जाना संभव है। इस प्रक्रिया के जरिए प्रवासी मजदूरों के बीच में उसे उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए आंदोलनों का संचालन हेतु नेतृत्व देने वाले लोगों को तैयार किया जाना होगा।

3. अंतरराज्यीय प्रवासी मजदूर अधिनियम, 1979 के धारा 2(1)(ई) में 'अंतरराज्यीय प्रवासी मजदूर' की परिभाषा संशोधित करके उसके दायरे में उन मजदूरों को भी शामिल किया जाना चाहिए जो अपने इच्छा से दूसरे राज्यों में पहुंच कर प्रवासी मजदूर बन गए हों। कानून में यह भी प्रावधान जोड़ा जाना चाहिए कि अधिनियम व नियम में किसी भी प्रावधान का उल्लंघन होने पर तथा तीसरे पार्टी द्वारा शिकायत किए जाने पर भी यदि वह शिकायत सही पाई गई तो संबंधित अधिकारी भी समय पर कार्रवाई न किए जाने के अपराध से बरखास्तगी या जेल जाने की सजा के भागीदारी होंगे। कानून का उल्लंघन होने पर ठेकेदार के साथ पेटी-ठेकेदार भी जवाबदार होंगे। प्रवासी मजदूरों की शिकायतों के जल्द निपटारे के लिए विशेष कोर्ट की स्थापना किया जाना चाहिए।

4. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के दायरे में प्रवासी मजदूरों को भी शामिल किया जाना चाहिए।

5. भूमि सुधार कानूनों पर पूरी शक्ति से अमल किया जाना चाहिए।

6. वन भूमि में आदिवासी व अन्य परंपरागत निवासियों सभी को वन अधिकारी अधिनियम 2006 के अनुसार भूमि अधिकार पट्टा दिया जाना चाहिए तथा उन्हें उस जमीन पर खेती करने के लिए सरकार द्वारा आवश्यक धनराशि अनुदान के रूप में उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

7. छत्तीसगढ़ के असिंचित क्षेत्रों में लघु व मध्यम सिंचाई योजनाओं का जाल बिछा देना चाहिए। जिसके लिए सरकार की बजट में विशेष प्रावधान हो।

8. छत्तीसगढ़ के उन जिलों में जहां ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-बड़े उद्योग लगाए गए हैं वहां उन ग्रामीण क्षेत्रों में ही ऐसे लघु व कुटीर उद्योगों की स्थापना किया जाना चाहिए जो सहायक उद्योग के रूप में काम करेंगे और जिसमें ग्रामीण बेरोजगार युवकों को  काम मिलेगा।

9. नक्सलवाद समस्या का सभी पक्षों के बीच वार्ता के जरिए हल निकालना चाहिए।

         

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