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भगवान शिव के इस मंदिर में होती है मेंढ़क की पूजा, यंत्र के बीच में मौजूद हैं महादेव

  लखीमपुर । उत्तर प्रदेश में कई प्राचीन और एतिहासिक मंदिर हैं जो कई सालों से लोगों की आस्था का केंद्र हैं। लखीमपुर के पास ऐसा ही एक प्राचीन...

 

लखीमपुर । उत्तर प्रदेश में कई प्राचीन और एतिहासिक मंदिर हैं जो कई सालों से लोगों की आस्था का केंद्र हैं। लखीमपुर के पास ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर है जिसे मांडूका मंदिर के नाम से जाना जाता है। बहुत कम लोग इस मंदिर के बारे में जानते हैं। इस मंदिर की क्या खासियत और इसका क्या इतिहास है, ये हम आपको इस खबर में बताने जा रहे हैं।

19वीं शताब्दी की शुरुआत में राजा बख्त सिंह नामक एक अमीर जमींदार रहता था, जिसके कोई संतान नहीं थी और वह एक उत्तराधिकारी चाहता था। वह एक तांत्रिक बाबा के पास आया जिसने उसे बताया कि उसे एक शिव मंदिर बनाना होगा। उसने जो विधि बताई उसमें एक मेंढक की बलि देना था। मेंढक सौभाग्य का प्रतीक होता है इसलिए उसकी बलि के स्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण किया गया। इसके तुरंत बाद पूरा क्षेत्र गन्ने और चावल की खेती से फलने-फूलने लगा। आज भी राजा बखत सिंह के वंशज समय-समय पर मंदिर में पूजा करने आते हैं। 

मंदिर का गर्भगृह सौ फीट ऊंचा है जहां सीढ़ियां चढ़कर पहुंचा जाता है। इसमें एक शिव लिंग है जो एक तांत्रिक यंत्र (एक अष्टकोणीय कमल) के बीच में रखा गया है। स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर के अंदर शिव लिंग रंग बदलने वाला है।

पूरे मंदिर की वास्तुकला एक गहन गुप्त विज्ञान के अनुसार बनाई गई है जिसे शायद हम आज डिकोड नहीं कर सकते हैं। पहले मंदिर के आसपास तांत्रिक क्रियाएं होती थी लेकिन ये अब बंद हो गई है। आसपास के इलाकों के लोग खास तौर पर शादीशुदा जोड़े यहां आशीर्वाद लेने आते हैं। देश के हर शिव मंदिर में लिंग के सामने नंदी बैठे हुए मिलते हैं, लेकिन यहां नंदी की मूर्ति वास्तव में खड़ी है!

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