जीएसटी छतिपूर्ति बंद होने से छत्तीसगढ़ को प्रतिवर्ष 6 हज़ार करोड़ का नुकसान केंद्र मार्च 2027 तक वसूलेगी क्षतिपूर्ति सेस, लेकिन राज्यों को 1 जु...
केंद्र मार्च 2027 तक वसूलेगी क्षतिपूर्ति सेस, लेकिन राज्यों को 1 जुलाई 2022 से जीएसटी क्षतिपूर्ति देना बंद
भाजपा के 9 सांसद और राष्ट्रिय उपाध्याक्ष रमन सिंह छत्तीसगढ़ की उपेक्षा पर भी दलीय चाटुकारित में मौन है
रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि हमारा प्रदेश सीमेंट और स्टील के उत्पादन में अग्रणी राज्य है। कोयला, आयरनओर और बॉक्साइट जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में है जिसका दोहन केंद्र सरकार और उसके उपक्रम करते हैं। देश में जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद वेट जैसे टैक्स खत्म हो गए जो राज्य की आय का प्रमुख स्रोत हुआ करते थे। वाणिज्य कर (वेट) के स्थान पर जीएसटी लगाए जाने से उत्पादक राज्यों को मिलने वाले राजस्व में भारी नुकसान सर्वविदित है। जीएसटी लागू करने के समय यह भी तय किया गया था कि उत्पादक राज्यों को होने वाले हैं राजस्व की भरपाई के लिए राज्यों को 5 साल के लिए क्षतिपूर्ति दी जाए और इसकी भरपाई जीएसटी शेष के जरिए हो। उक्त 5 साल की अवधि 30 जून 2022 को खत्म होने पर एक जुलाई 2022 से राज्यों को क्षतिपूर्ति देना तो केंद्र की मोदी सरकार ने बंद कर दिया लेकिन उस क्षतिपूर्ति की व्यवस्था के लिए केंद्र द्वारा लगाए जाने वाले सेस की वसूली पुनः आगामी पौने 5 साल अर्थात 31 मार्च 2027 तक की अवधि के लिए बढ़ा दिया गया। एक तरफ जब केंद्र की मोदी सरकार ने जीएसटी क्षतिपूर्ति सेस की वसूली 2027 तक बढ़ाई है तो फिर उत्पादक राज्यों को होने वाली है क्षति की पूर्ति बंद कर अन्याय क्यों?
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि मोदी सरकार का रवैया सहकारी संघवाद और राज्यों के आर्थिक हितों के खिलाफ है। पीएम आवास, बागवानी मिशन, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना सहित लगभग सभी केंद्रीय योजनाओं में केंद्रास कम करके राज्यांश बढ़ाया गया है। केंद्रीय करो में राज्यों को हिस्सा देने की देनदारी से बचने के लिए बड़ी चालाकी से सेंट्रल एक्साइज में कटौती करके उसी अनुपात में अलग से सेस लगा दिया गया। राज्यों के राजस्व प्राप्ति के स्रोत सीमित है लेकिन केंद्र की मोदी सरकार वित्त व्यवस्था में भी अपना अधिनायकवाद थोपने आमादा है। यही नहीं चंद पूंजीपति मित्रों के मुनाफे के लिए काम करने वाली मोदी सरकार केंद्रीय बजट में जनहित और लोक कल्याणकारी मदों में भी लगातार कटौती कर रही है। मनरेगा जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने वाले महत्वकांक्षी योजना के लिए 2020-21 में आवंटित 1,11,171 करोड़ के बजट को वर्तमान बजट में लगभग आधा करके मात्र 60,000 करोड़ कर दिया है। मध्यान भोजन, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, मातृत्व लाभ, आईसीडीएस बच्चों के कुपोषण दूर करने की योजना, खाद्य सब्सिडी और खाद्य सब्सिडी के बजट में भी लगातार कटौती की जा रही है। एक तरफ चंद पूंजीपतियों के 11 लाख करोड़ के लोन राइट आप किए गए डेढ़ लाख करोड़ का हर साल कारपोरेट टैक्स में राहत दी जा रही है तो वहीं ना युवाओं के लिए रोजगार है और ना ही किसानों को एमएसपी की गारंटी। दैनिक उपभोग की वस्तुओं अनाज, दलहन, तिलहन, कपड़ा, दूध, दही, पनीर और सब्जी भाजी तक को जीएसटी के दायरे में लाकर आम जनता का तेल निकाला जा रहा है। लेकीन विपक्षी दलों वाले राज्यों को इरादातन षड़यंत्र पूर्वक उनके हक और अधिकार से वंचित किया जा रहा है। कोल की रॉयल्टी, जीएसटी की क्षतिपूर्ति, केंद्रीय करो में राज्यांश बदनीयती से रोका गया है। छत्तीसगढ़ की जनता ने तो यहां से भाजपा के 9 सांसद चुनकर भेजे है फिर मोदी सरकार और भाजपा छत्तीसगढ़ की जनता से आखिर किस बात का बदला ले रहे हैं? भाजपा के 9 सांसद और राष्ट्रिय उपाध्याक्ष रमन सिंह छत्तीसगढ़ की उपेक्षा पर भी दलीय चाटुकारित में मौन है?
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