नई दिल्ली। हैदराबाद में क्यू फीवर के बढ़ते मामलों को देखते हुए तेलंगाना में कई कसाईयों को शहर में बूचड़खानों से दूर रहने की सलाह दी गई है...
नई दिल्ली। हैदराबाद में क्यू फीवर के बढ़ते मामलों को देखते हुए तेलंगाना में कई कसाईयों को शहर में बूचड़खानों से दूर रहने की सलाह दी गई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र (NRCM) ने पुष्टि की है कि 250 नमूनों में से 5 कसाइयों में बैक्टीरिया कॉक्सिएला बर्नेटी की वजह से होने वाला क्यू फीवर पाया गया है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि मवेशियों से इंसानों में फैलने वाली ये बीमारी क्यू फीवर आखिर क्या है और क्या हैं इसके लक्षण और बचाव के उपाय।
क्या है क्यू फीवर ?
क्यू फीवर कॉक्सिएला बर्नेटी (Coxiella burnetii) बैक्टीरिया के कारण होने वाली बीमारी है। क्यू फीवर एक असामान्य बैक्टीरियल संक्रमण है, जो जानवरों से व्यक्ति में फैलता है। यह तीव्र और दीर्घकालिक दोनों तरह का हो सकता है। सीडीसी के मुताबिक क्यू फीवर मुख्य तौर पर बकरी, भेड़ और मवेशियों के जरिए इंसानों में फैलने वाली बीमारी है। ये बीमारी मवेशियों के मल, मूत्र, दूध और मांस के संपर्क में आने से हो सकती है।जिन लोगों को ये बीमारी संक्रमित करती हैं कई बार उन्हें फेफड़ों (निमोनिया) या लीवर (हेपेटाइटिस) के संक्रमण का खतरा भी हो सकता है।
पहली बार कब खोजा गया क्यू फीवर -
क्यू फीवर पहली बार ऑस्ट्रेलिया में साल 1935 में और संयुक्त राज्य अमेरिका में 1940 के दशक में एक आधिकारिक मानव रोग के रूप में खोजा गया था। क्यू फीवर में Q शब्द क्वेरी को संदर्भित करता है जो तब दिया गया था जब बीमारी का कारण अज्ञात था।
बता दें, कॉक्सिएला बर्नेटी या सी. बर्नेटी, क्यू फीवर का मूल कारण है। बैक्टीरिया आमतौर पर श्वसन पथ के माध्यम से, उस धूल में सांस लेने से संचारित होता होता है जिसमें संक्रमित जानवर के बैक्टीरिया होते हैं। सी. बर्नेटी ज्यादातर बकरियों, भेड़ों और मवेशियों जैसे जानवरों में पाए जाते हैं।
क्यू फीवर के लक्षण-
आम तौर पर मवेशियों और बकरियों से फैलने वाले इस जीवाणु संक्रमण के कारण मरीजों को बुखार, थकान, सिरदर्द, उल्टी या दस्त, वजन घटना, सीने में दर्द और दस्त जैसे लक्षण देखने को मिल रहे हैं। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार आमतौर पर क्यू फीवर के लक्षण बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 2 से 3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं।
क्यू फीवर से बचाव के उपाय-
सीडीसी के अनुसार क्यू फीवर से बचने के लिए जानवरों और मवेशियों के संपर्क में आने से बचना चाहिए। खासकर तब जब कोई मवेशी अपने बच्चे को जन्म देने वाला हो। इसके अलावा क्यू फीवर संक्रमण से बचने के लिए व्यक्ति को कच्चे दूध या कच्चे दूध से बनी चीजों का सेवन करने से भी बचना चाहिए।
क्यू फीवर का उपचार-
रोगी में क्यू फीवर के गंभीर लक्षण दिखाई देने पर उसे 2 सप्ताह के डॉक्सीसाइक्लिन एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट लेने की सलाह दी जाती है। लेकिन अगर क्यू फीवर के लक्षण 1 सप्ताह से ज्यादा दिन तक बने रहते हैं तो तुरंत नजदीकी डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
No comments