आलेख - आमना ‘मीर’ रायपुर । छत्तीसगढ़ के तीज-त्योहार सरकारी तौर पर मनाने की शुरुआत करने के बाद राज्य सरकार ने आहार को भी छत्तीसगढ़िया गौरव...
आलेख - आमना ‘मीर’
रायपुर । छत्तीसगढ़ के तीज-त्योहार सरकारी तौर पर मनाने की शुरुआत करने के बाद राज्य सरकार ने आहार को भी छत्तीसगढ़िया गौरव से जोड़ दिया है। शुरुआत किसानों-मजदूरों का आहार कहे जाने वाले बोरे-बासी से हो रही है। मजदूर दिवस यानी एक मई को श्रम को सम्मान देने के लिए सभी से बोरे बासी खाने की अपील की है। हर छत्तीसगढ़िया के आहार में बोरे बासी का कितना महत्व है। हमारे श्रमिक भाइयों, किसान भाइयों और हर काम में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली हमारी बहनों के पसीने की हर बूंद में बासी की महक है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कहा, जब हम कहते हैं कि ‘बटकी में बासी अउ चुटकी में नून’ तो यह सिंगार हमें हमारी संस्कृति से जोड़ता है। डॉ. खूबचंद बघेल ने भी खूब कहा है, ‘गजब विटामिन भरे हुए हे छत्तीसगढ़ के बासी मा’ मुख्यमंत्री ने कहा, युवा पीढ़ी को हमारे आहार और संस्कृति के गौरव का एहसास कराना बहुत जरूरी है। एक मई को हम सब बोरे बासी के साथ आमा के अथान और गोंदली के साथ हर घर में बोरे बासी खाएं और अपनी संस्कृति और विरासत पर गर्व महसूस करें।क्या है यह बोरे बासी
बोरे बासी छतीसगढ़ का प्रमुख और प्रचलित व्यंजन है। बोरे बासी का मतलब होता है रात के पके चावल को रात को भिगो कर या सुबह भिगो कर खाना या सुबह के पके चावल को दोपहर में खाना। इसमें स्वादानुसार नमक मिलाया जाता है। फिर सब्जी, प्याज, आचार, पापड़, बिजौरी इत्यादि के साथ खाया जाता है। कई बार लोग केवल नमक और प्याज से बासी खाते हैं। बोरे का अर्थ है सुबह के चावल को पानी में भिगोए रखना और बासी का मतलब है रात के बचे चावल को पानी में भिगोकर रात भर रखना उसे कहते हैं बासी इसका अर्थ हो जाता है बोरे बासी। गर्मी के दिनों में बोरे बासी शरीर को ठंडा रखता है। पाचन शक्ति बढ़ाता है। त्वचा की कोमलता और वजन संतुलित करने में भी यह रामबाण है। बोरे बासी में सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं। बोरे बासी यानी बासी चावल जिसका स्वाद चावल से कई गुना बदल जाता है एवं स्वादिष्ट लगने लगता है बोरे बासी को तैयार करने के लिए सबसे पहले चावल पकाकर उसे रात को पानी में डालकर एवं छोड़ दिया जाता है तब उसे सुबह वह चावल बासी के रूप में प्राप्त होता है । और बासी एक छत्तीसगढ़ की प्रमुख व्यंजन है जिसे गर्मी के समय में पेट पूजा के लिए एवं भोजन का मुख्य व्यंजन है, बोरे -बासी त्वचा को स्वस्थ एवं शरीर में किसी भी बीमारी को दूर करने में सहायक प्रदान करता है एवं विटामिंस सी विटामिन की मात्रा सबसे ज्यादा होती है ,और इसमें बोरे बासी हमारे ही राज्य में नहीं अन्य राज्यों में एवं अमेरिका जैसे देशों में रहने वाले भारतीयों द्वारा भी खाया जाता है।
बोरे-बासी में विटामिन भरपूर
विटामिन बी-12 की प्रचूर मात्रा के साथ-साथ बोरे बासी में आयरन,
पोटेशियम, कैल्शियम की मात्रा भरपूर होती है। इसे खाने से पाचन क्रिया सही
रहती है और शरीर में ठंडक रहती है। ब्लड और हाइपरटेंशन को नियंत्रित करने
का भी काम करती है। गर्मी के दिनों में बोरे-बासी शरीर को ठंडा रखती है।
पाचन शक्ति बढ़ाती है। त्वचा की कोमलता और वजन संतुलित करने में भी यह
रामबाण है। बोरे-बासी में सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं।
बासी खाने से लाभ
बासी खाने से होंठ नहीं फटते, पाचन तंत्र को सुधारता है। इसमें पानी भरपूर होता है, जिससे गर्मी के मौसम में ठंडक मिलती लू से बचाता है। पानी मूत्र विसर्जन क्रिया को बढ़ाता है जिससे ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। पथरी और मूत्र संस्थान की दूसरी बीमारियों से बचाता है। चेहरे के साथ पूरी त्वचा में चमक पैदा करता है। पानी और मांड के कारण ऐसा होता है। कब्ज, गैस और बवासीर से दूर रखता है। मोटापे से बचाता है। मांसपेशियों को ताकत देता है।
बोरे-बासी से जुड़ी रोचक बातें-
स्कूल में बच्चे गुरुजी से छुट्टी मांगने के लिए कहते हैं- बासी खाए बर जाहूं गुरुजी। छत्तीसगढ़ी कहावत है- बासी के नून नई हटे। यानी गई हुई इज्जत वापस नहीं आती।बासी का चावल अंगाकर, पान रोटी या फरा बनाने के भी काम आता है। बची हुई बासी खड़ा नमक मिलाकर पशुओं को दे दी जाती है।
बोरे बासी गीत
आ गे आ गे आ गे बोरे बासी तिहार,
मानत ये ला छत्तीसगढ़ सरकार ।
बोरे बासी म हय अबड़ गुन,
चटनी संग खाले डार के थोकीन नून।
खावत हे बोरे बासी मजदूर किसान संत्री मंत्री सरकार,
बोरे बासी के गुन ला बगरा दिस देश विदेश मे अपार।
छत्तीसगढ़ के बोरे बासी सबके मन ला भा गे,
सब बोरे बासी खाके मनाथन ये तिहार ।
छत्तीसगढ़ महतारी के महिमा दाऊ जी हा जगात हे,
छत्तीसगढ़ के गुन ला सब जगह गात हे,
छत्तीसगढ़ आदर मान ला बढ़हावत हे भूपेश सरकार।।
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