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गांव में नहीं पहुंचती एंबुलेंस, मरीजों को चारपाई से पहुंचाया जाता है अस्पताल

 पखांजुर।  21वीं सदी के भारत में अगर किसी मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की जगह चारपाई पर लिटाकर उसे ले जाने की मजबूरी हो तो इस...

 पखांजुर।  21वीं सदी के भारत में अगर किसी मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की जगह चारपाई पर लिटाकर उसे ले जाने की मजबूरी हो तो इसे सरकार की विडंबना और उदासीनता ही कहा जाएगा। गौरतलब है कि छत्‍तीसगढ़ के कांकेर जिले के पखांजुर इलाके के अंदरूनी गांव के ग्रामीणों की स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी खाट पर टिकी हुई है। दरअसल, जो फोटो आप देख रहे है वह किसी अट्ठारवीं सदी की नहीं बल्कि 21वीं सदी के इसी आधुनिक भारत की तश्वीर है। जो भारत 5जी में जी रहा है। लेकिन शर्म को बात है कि अंदरूनी इलाके में ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं हो पा रही है। बताना लाजमी होगा कि ग्राम पंचायत स्वरूपनगर का आश्रित गांव पोरियाहुर के ग्रामीण विष्णु गावड़े को रात 3 बजे अचानक उल्टी दस्त होने लगी। स्थिति इतनी खराब हो गई कि सुबह तक इंतजार करना संभव नहीं था। उसे पैदल या मोटरसाइकिल में बैठाकर अस्पताल भी नहीं ले जाया जा सकता था। मरीज की जान बचाने गांव के ग्रामीण चारपाई पर मरीज विष्णु गावड़े को लेटाया पैदल चल पड़े। और संजीवनी वाहन सुविधा के लिए 108 को काल किया। गांव से 6 किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद जब ग्रामीण पुलविहीन बारकोट नदी पार करने के बावजूद भी नदी के दूसरी ओर संजीवनी वाहन का लाभ नहीं मिला। जिससे मरीज की स्थिति देख ग्रामीणों ने पुनः पैदल चलने की तैयारी की और तीन किलोमीटर दूर और पैदल चलकर संगम पहुंचे। ऐसे में कुल 9 किलोमीटर पैदल दूरी तय करने के बाद चारपाई से मरीज को मुक्ति मिली और संजीवनी वाहन के जरिये पखांजुर सिविल अस्पताल लाया गया।जहां मरीज को भर्ती कराकर उपचार किया जा रहा है। वहीं आधुनिक के इस युग मे भी ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का न मिल पाया सरकार के लिए नाकामी से कम नही है। और अंदरूनी इलाके के ग्रामीणों ने साफ अहसास करा दिया है कि वे सरकार के भरोसे पर नहीं टिके हुए है। बारकोट नदी पुलविहीन होने के चलते संजीवनी वाहन का गांव तक पहुंचना संभव नहीं था, लेकिन नदी के तट तक एंबुलेंस पहुंच सकती थी। जिससे ग्रामीणों को शीघ्र और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया हो पाती।

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