अल्मोड़ा । उत्तराखंड में भी जहरीले सांप पाए जाते हैं। एक्सपर्ट को इस बात की चिंता है कि सांपों के काटने से लोगों की तुरंत मौत भी हो सकती ह...
अल्मोड़ा । उत्तराखंड में भी जहरीले सांप पाए जाते हैं। एक्सपर्ट को इस बात की चिंता है कि सांपों के काटने से लोगों की तुरंत मौत भी हो सकती हे। चिंता की बात है कि सांप काटने की वजह से सबसे ज्यादा मामले उत्तराखंड के तराई में सामने आए हैं। उत्तराखंड राज्य का तराई भाग मानव सृप संघर्ष से जूझ रहा है। सांपों के काटने के सर्वाधिक मामले नैनीताल वन क्षेत्र में दर्ज किए गए। जबकि मानव हानि के सर्वाधिक मामले तराई पूर्वी में दर्ज हुए। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत अनुसंधान परियोजना में तराई के छह फॉरेस्ट डिविजनों में सांपों से होने वाली हानि का अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ है। हालांकि अध्ययन में पाया गया है कि राज्य में राज्य में विद्यमान सांपों के 41 प्रजातियों में से केवल 25% प्रजातियां विषैली है। जबकि 75 प्रतिशत सांप जहरीले नहीं है। वर्ष 2018 से 21 के बीच केवल तीन सालों में सांपों के काटने के मामलों में सरकार की ओर से लगभग 1 करोड़ 18 लाख रुपए से अधिक की धनराशि खर्च हुई है। अनुसंधान परियोजना के अध्ययन में स्पष्ट हुआ कि उत्तराखंड में लगभग 41 सांप प्रजातियां विद्यमान है, जिसमें केवल 25% प्रजातियां विषैली है। जबकि 75 प्रतिशत सांप जहरीले नहीं है। वहीं, इस अवधि में तराई पूर्वी, तराई मध्य, तराई पश्चिम और हल्द्वानी, रामनगर और नैनीताल क्षेत्र में 237 से अधिक सांपों के काटने के मामले र्प्रकाश में आए। इसमें 29 मानव हानि, 72 लोगों के घायल होने, और 136 पशुओं की मौत दर्ज की गई। वहीं नैनीताल क्षेत्र में लगभग 40 प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गई। इसमें कोबरा, करैत, वाइपर, पाइथन, बोरा, कीलबैक, कुकरी, त्रिकेत, कैट, दोमुहीं स्नैक आदि प्रमुख थे। वन विभाग के कर्मचारियों और सांपों को पकड़ने वाले विशेषज्ञों ने संपूर्ण तराई क्षेत्र में 200 से अधिक सांपों को बचाया। जिसमें विषैले सांपों कोबरा का प्रतिशत आठ, पिट वाइपर का सर्वाधिक 43 व रसिल वाईपर का 16 और कोबरा का 2 प्रतिशत थी। परियोजना अनुसंधान के दौरान जहां तराई क्षेत्र में सांपों के आंकड़ों को दर्ज किया गया। वहीं, प्रजातिवार उनकी मौजूदगी और स्थितियों को भी रिकार्ड किया गया। इस दौरान 998 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया गया जिसमें 220 से अधिक महिलाएं भी शामिल थी। क्षेत्र में किंग कोबरा के बिलों को संरक्षित करने के साथ सांपों द्वारा पहुंचाई जाने वाली हानि की प्रकृति व प्रभावों का भी अध्ययन किया। सांपों के देश भारत में सांपों की पहचान नहीं दुनियां भर में हर साल बड़ी संख्या में लोग सांपों के काटने से अपने प्राण गंवाते हैं। वहीं, अज्ञानता में हर साल लाखों की संख्या में निर्दोष सांपों को मारकर हम पर्यावरण और पारिस्थितिकी के चक्र को भी प्रभावित कर रहे हैं। मानव- वन्य जीव संघर्ष में सांपों के साथ मानव के संघर्ष की बड़ी भूमिका है। मानव-सृप संघर्ष पर यह नवीन और प्रासंगिक अनुसंधान अत्यंत उपयोगी है। सांपों के संरक्षण, पहचान में इस इस ज्ञान उत्पाद सहायक होंगे।
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