ऋषिकेश। उत्तराखंड में पहाड़ पर ट्रेन को चलाने में अब देरी होने लगी है। चिंता की बात है कि पहाड़ों पर ट्रेन चलाने को दो साल का और लंबा इंतजार...
ऋषिकेश। उत्तराखंड में पहाड़ पर ट्रेन को चलाने में अब देरी होने लगी है। चिंता की बात है कि पहाड़ों पर ट्रेन चलाने को दो साल का और लंबा इंतजार करना पड़ेगा। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना को धरातल पर उतरने में अभी समय लगेगा। रेल विकास निगम 2026 तक ऋषिकेश-व्यासी के बीच ही रेल लाइन बना सकेगा। कोरोना संक्रमण के चलते कार्य बाधित होने से कर्णप्रयाग तक रेल लाइन बिछने में अधिक समय लग रहा है। 16216 करोड़ की लागत से तैयार हो रही 125 किलोमीटर लंबी रेल लाइन को दिसबंर 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया था। मंगलवार को रेल विकास निगम के ऋषिकेश स्थित कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में आरवीएनएल के मुख्य परियोजना प्रबंधक अजीत यादव ने बताया कि 16216 करोड़ की लागत से तैयार हो रही 125 किमी लंबी रेल परियोजना में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक 105 किमी रेल लाइन 17 सुरंगों के भीतर से होकर गुजरेगी। परियोजना को तय समय पर पूरा करने को रेल विकास निगम ने ताकत लगा रखी है। बताया कि ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक सुरंगों के भीतर बिछाई जाने वाली सिंगल ब्राडगेज रेल लाइन की लंबाई वैसे तो 105 किमी है, लेकिन देवप्रयाग (सौड़) से जनासू के बीच 14.8 किमी लंबाई की दो अलग-अलग सुरंग बनाई जाएंगी। इस डबल ट्यूब टनल में गाड़ियों के आने-जाने के लिए अलग-अलग ब्राडगेज लाइन बिछाई जाएगी। इससे मुख्य सुरंग की लंबाई 105 किमी से बढ़कर 116 किमी के आसपास हो जायेगी। 14.8 किमी लंबी इस सुरंग का 11 किमी हिस्सा टीबीएम और शेष हिस्सा ड्रिल व ब्लास्ट तकनीकी से तैयार हो रहा है। सीपीएम ने बताया कि भूकंप से टनल को कोई नुकसान नहीं होगा। इसके लिये विशेषज्ञ वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के आधार पर कार्य हो रहा है। रेल परियोजना में सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया है। कहा के कोरोना संक्रमण से लंबे अरसे तक काम प्रभावित रहा, इसलिए तय अवधि में रेल लाइन बिछाने में दिक्कत आ रही है। संभावना जताई कि 2026 तक ऋषिकेश-व्यासी के बीच रेल लाइन बनकर तैयार हो जायेगी। इस अवसर पर प्रोजेक्ट मैनेजर ओपी मालगुडी आदि मौजूद रहे। उत्तराखंड में खनन कार्य पर रोक का असर भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन पर पड़ता दिख रहा है। प्रोजेक्ट का समय पर पूरा न होने का यह भी एक कारण माना जा रहा है। मुख्य प्रोजेक्ट मैनेजर ने बताया कि टनल खुदान से 40 प्रतिशत पत्थर मिलने की उम्मीद थी। लेकिन 20 प्रतिशत पत्थर ही उपलब्ध हो पा रहा है। उत्तराखंड में टनल खुदान से मिले पत्थर भी कमजोर है। इसे निर्माण कार्य में नहीं लगाया जा सकता है। उत्तराखंड सरकार को भी समस्या की जानकारी दे दी गई है।
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