नयी दिल्ली: भारतीय निशानेबाज दिव्यांश सिंह पंवार को एशियाई खेलों के शुरूआती तीन दिनों में भावनाओं के उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ा लेकिन उनके को...
नयी दिल्ली: भारतीय निशानेबाज दिव्यांश सिंह पंवार को एशियाई खेलों के शुरूआती तीन दिनों में भावनाओं के उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ा लेकिन उनके कोच को उम्मीद है कि 20 साल का यह खिलाड़ी आने वाले दिनों में और मजबूत होकर उभरेगा। दिव्यांश पुरुषों के 10 मीटर एयर राइफल में सोमवार को स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे लेकिन मंगलवार को वह लय में नहीं दिखे और मिश्रित टीम स्पर्धा में उनकी और रमिता जिंदल की जोड़ी कांस्य पदक मुकाबले में पिछड़ गयी। दिव्यांश व्यक्तिगत प्रदर्शन से भी प्रभावित नहीं कर सके। जिसके बाद बड़े टूर्नामेंटों में दबाव झेलने उनकी क्षमता पर सवाल उठने लगे। दिव्यांश के लिए साल 2019 शानदार रहा था और वह उस साल महज 17 साल की उम्र में विश्व के नंबर एक खिलाड़ी बन गये थे। राजस्थान के इस खिलाड़ी इसके बाद तोक्यो ओलंपिक में बेहद निराशाजनक प्रदर्शन किया था। दिव्यांश के कोच दीपक दुबे हालांकि मानते है कि यह उसके लिए ‘मामूली झटके’ की तरह है। दुबे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘ उसके प्रदर्शन को लेकर कोई समस्या नहीं है। यह काफी हद तक टीम के साथ मौजूद कोच के साथ संयोजन और तालमेल पर निर्भर करता है। मुझे वहां (हांगझोउ) कोच के संयोजन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।’’ दुबे ने कहा, ‘‘ निशानेबाजी में यह महत्वपूर्ण है कि कोच कठिन परिस्थितियों में निशानेबाज को दबाव से निपटने में कैसे मदद करता है। हो सकता है समन्वय की कमी रही हो। उसने तोक्यो ओलंपिक की असफलता के बाद मानसिक रूप से काफी मजबूत वापसी की थी।’’ दुबे ने कहा, ‘‘इतने सारे युवा खिलाड़ियों के साथ टीम में जगह बनाना आसान नहीं था। वह उन चुंिनदा निशानेबाजों में है जिसने तोक्यो ओलंपिक के बाद राष्ट्रीय टीम में वापसी की है।’’ कोच ने कहा, ‘‘ सौरभ चौधरी, और इला (इलावेनिल वलारिवन) जैसे उसके समकक्ष निशानेबाज अभी तक मुख्यधारा में लौटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।’’ दुबे का मानना है कि दिव्यांश इस साल के अंत में दक्षिण कोरिया के चांगवोन में एशियाई चैंपियनशिप में लय हासिल करेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘ उसका लक्ष्य एशियाई चैंपियनशिप में कोटा स्थान हासिल करना है। एशियाई खेल उनके लिए एक तरह का रिहर्सल है क्योंकि उन्हें वहां (चांगवोन) और भी कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। ’’
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