कोरबा । पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र में दलबदल का पुराना इतिहास है। यहां के जितने भी बड़े नेता रहे, उन्होंने ऐन मौके पर पाला बदल लिया। इस ...
कोरबा । पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र में दलबदल का पुराना इतिहास है। यहां के जितने भी बड़े नेता रहे, उन्होंने ऐन मौके पर पाला बदल लिया। इस प्रवृत्ति के कारण प्रदेश के कई नेताओं को राजनीतिक भविष्ट खराब हो गया, लेकिन इसकी ठीक उलट पाली-तानाखार क्षेत्र से दल बदलने वाले नेताओं की राजनीति और चमकती रही। रामदयाल उइके इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र में गोंडवाना आदिवासी समाज का वर्चस्व है। इसके बाद कंवर समाज और फिर महंत समाज के मतदाता हैं। यहां कुल दो लाख 22 हजार 212 मतदाता हैं। इस क्षेत्र की जनता ने अपने बीच के लोगों को चुनाव में जिताया पर विधायक बनने के बाद उन्होंने क्षेत्र का भला नहीं किया। इतना ही नहीं, अपनी पार्टी के प्रति निष्ठा भी नहीं रखी और दल बदल लिया।प्रदेश में तरुण चटर्जी हों या फिर अरविंद नेताम, विद्याचरण शुक्ला, पवन दीवान दल बदलने के बाद उनकी राजनीति खत्म हो गई। इसके ठीक उलट पाली-तानाखार में जिस नेता ने दल बदला, उसकी राजनीति उतनी चमकी। वर्ष 1972 के बाद यहां से जो विधायक बना, उसने अपना दल बदल लिया। वर्ष 1972 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर लाल कीर्ति कुमार सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। वर्ष 1977 में भाजपा से अमोल सिंह सलाम विधायक चुने गए और बाद में वे भी कांग्रेस में शामिल हो गए। वर्ष 1985 में भाजपा ने हीरासिंह मरकाम को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत हासिल की, पर बाद में मरकाम ने भाजपा को छोड़ दिया तथा स्वयं की गोंड़वाना गणतंत्र पार्टी बना ली। इस पार्टी से वे विधायक भी चुने गए। उनकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी हुई है। उधर भाजपा से कांग्रेस में आए अमोल सिंह सलाम 1998 में चुनाव लड़े, पर हार का सामना देखना पड़ा। इसके बाद भी पार्टी ने उन्हें उपकृत कर राज्य सेवा आयोग का सदस्य बनाया। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद यही स्थिति बनी रहीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए मरवाही से अपनी सीट छोड़ने वाले भाजपा विधायक रामदयाल उइके वर्ष 2003 में कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़कर विधायक चुने गए। लगातार तीन बार विधायक रहने के साथ ही उइके का राजनीति कद बढ़ा और प्रदेश कांग्रेस में उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया, पर वर्ष 2018 में चुनाव के ठीक पहले उइके ने कांग्रेस का दामन छोड़ा और पुन: भाजपा में आ गए हैं। भाजपा ने वर्ष 2018 चुनाव में मैदान में उतारा, पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार फिर भाजपा ने रामदयाल को यहां से प्रत्याशी बनाया है। वनांचल क्षेत्र से आच्छादित पाली तानाखार विधानसभा क्षेत्र की ज्यादातर आबादी वनांचल और ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इसके कारण आदिवासी ही इस सीट पर जीत और हार तय करते हैं। 75 प्रतिशत से ज्यादा आबादी आदिवासियों की है। इसी वजह से आदिवासी वर्ग के लिए सीट आरक्षित है। इसके बाद भी यहां के जनप्रतिनिधि दल बदलते रहे, इसका खामियाजा क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ रहा।
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