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राज्यपाल ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री शास्त्री की जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित की

  रायपुर । राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन ने आज यहाँ राजभवन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित की। श्री हरिचं...

 

रायपुर । राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन ने आज यहाँ राजभवन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित की। श्री हरिचंदन ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी की जयंती पर उन्हें भी पुष्पांजलि दी। इस अवसर पर राज्यपाल के सचिव श्री अमृत कुमार खलखो, विधिक सलाहकार श्री राजेश श्रीवास्तव, उपसचिव श्री दीपक अग्रवाल, नियंत्रक श्री संजय विश्वकर्मा सहित राजभवन के सभी अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे। राज्यपाल श्री हरिचंदन ने इस अवसर पर गांधी जी और शास्त्री जी के देश के प्रति अविस्मरणीय योगदान को याद किया। उन्होंने कहा कि गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे। पूरा विश्व इस तथ्य पर अत्यंत आश्चर्यचकित हुआ कि गांधी जी ने अहिंसात्मक तरीके से ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्ति दिलाई। गांधी जी ने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ किया जिससे शासक वर्ग की नींव हिलने लगी और अंत में वर्ष 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। गांधी जी इसके अलावा समाज की कुरीतियों, अस्पृश्यता जातिवाद, लैंगिक असमानता आदि के खिलाफ थे। वे समाज सुधार पर भी बराबरी से ध्यान देते थे। यूनाईटेड नेशन ऑर्गेनाईजेशन ने गांधी जी के योगदान को याद करते हुए गांधी जंयती के दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।  राज्यपाल ने कहा कि भारत के दूसरे प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी  अपने देश के प्रति अटूट समर्पण के व्यक्ति थे। प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अनेक चुनौतियों से भरा था, लेकिन इस कठिन समय के दौरान उनके नेतृत्व ने राष्ट्र पर एक अमिट छाप छोड़ी। शास्त्री जी की विशेषताओं में से एक उनकी सादगी थी। वह एक साधारण जीवन जीते थे और अपनी मितव्ययिता के लिए जाने जाते थे। उनका आदर्श वाक्य, ‘जय जवान, जय किसान‘ सशस्त्र बलों और कृषि समुदाय दोनों के कल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण देता है। शास्त्री जी के नेतृत्व का सबसे कठिन समय 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान था, संघर्ष के दौरान उनके नेतृत्व ने उन्हें पूरे देश का सम्मान और प्रशंसा दिलाई। हम सबको गांधीजी और शास्त्रीजी के योगदान को याद रखना चाहिए और उनके दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए।

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