रायपुर। छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में मास्टर प्लान का समुचित पालन नहीं होने का खामियाजा आम व्यक्तियों को भुगतना पड़ रहा है। आबादी बढ़न...
रायपुर।
छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में मास्टर प्लान का समुचित पालन नहीं होने का
खामियाजा आम व्यक्तियों को भुगतना पड़ रहा है। आबादी बढ़ने के साथ शहरों
का विस्तार तो हुआ, लेकिन मास्टर प्लान का पालन उस गति से नहीं हो पाया,
जिसकी आवश्यकता थी। 2011 के मास्टर प्लान में उल्लेखित प्रावधान 2021 तक
पूरे नहीं हो सके अब 2031 के मास्टर प्लान को लागू किया गया है। उल्लेखित
प्रावधानों का पालन नहीं होने का खामियाजा यह हुआ कि न तो रोड
इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर हो सका और न ही सीवरेज व ड्रेनेज नेटवर्क पर काम हो
सका है। प्रदेश के कई शहरों के हालात यह है कि 2023 में पहली बार चुनिंदा
शहरों के मास्टर प्लान के बारे में सोचा गया। रायपुर,बिलासपुर को स्मार्ट
सिटी के दायरे में शामिल किया गया। बावजूद यहां स्मार्ट सिटी की खूबसूरती
दिखाई नहीं देती। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग की रिपोर्ट पर गौर करें तो
प्रदेश के 21 शहरों में अभी भी एसटीपी का निर्माण नहीं किया जा सका है,
जिसके कारण नालियों का गंदा पानी जीवन दायिनी नदियों में मिल रहा है।
राजधानी के नए मास्टर प्लान में कई क्षेत्रों का लैंड यूज बदला गया है,
जिसमें तिल्दा को नया औद्योगिक क्षेत्र के रुप में डेवलप करने की योजना
बनाई गई है। टाटीबंध को ट्रांसपोर्टेशन जोन, शैक्षणिक संस्थानों के लिए
बोरियाकला को, प्रीमीयम आवासीय जोन के लिए कचना, लाजिस्टिक हब के लिए गिरौद
को को शामिल किया गया है। आवास एवं पर्यावरण विभाग ने पहली बार अर्धशहरी व
छोटे शहरों के लिए भी मास्टर प्लान लागू किया है। इसमें पाटन, कुरूद,
कवर्धा, धमतरी एवं पिथौरा के निवेश क्षेत्रों के लिए मास्टर प्लान-2031 की
अधिसूचना जारी कर दी है। नए मास्टर प्लान में पाटन मास्टर प्लान-2031
महत्वपूर्ण माना जा रहा है है। मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र में लागू मास्टर
प्लान-2031 को लगभग एक लाख की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए तैयार किया
गया है। इसके साथ-साथ सुनियोजित विकास एवं यातायात की सुगमता के लिए
विभिन्न प्रस्ताव दिए गए हैं। कवर्धा मास्टर प्लान 2031 एवं पिथौरा मास्टर
प्लान 2031 भी एक लाख की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया
है, जबकि धमतरी विकास योजना 2031 ढाई लाख जनसंख्या की आवश्यकताओं को ध्यान
में रखकर तैयार की गई है। सभी विकास योजनाओं में भू-उपयोग एवं नगर विकास के
प्रस्ताव के साथ साथ नगरीय अधोसंरचना एवं सेवा सुविधाओं के प्रस्ताव सृजित
किए गए हैं। ताकि सुनियोजित विकास को बढ़ावा मिल सके। मास्टर प्लान का
समुचित पालन नहीं होने की वजह से राजधानी में 76 उन सड़कों को शामिल किया
गया है, जो कि पुराने मास्टर प्लान में शामिल किया गया था। 2021 के मास्टर
प्लान को 10 साल बीतने के बाद भी लागू नहीं किया जा सका है। अब 2031 के
मास्टर प्लान में राजधानी में 146 एमआर रोड को शामिल किया गया है। राजधानी
के मास्टर प्लान को 30 लाख की आबादी के मद्देनजर तैयार किया गया है, जिसमें
शहर के दायरे को 822 हेक्टेयर बढ़ाया गया है। ग्राम एवं नगर निवेश के
अधिकारियों के मुताबिक 2021 के मास्टर प्लान की कमियों को ध्यान में रखते
हुए इसमें सुधार किया गया है। अब समय आ चुका है। हमें शहरों के साथ
छोटे-बड़े कस्बे व गांवों के सुव्यवस्थित विकास के साथ मास्टर प्लान के
बारे में सोचना होगा। हम मास्टर प्लान बनाते हैं,लेकिन साल-दर-साल इसका
पालन नहीं हो पाता है। देश के कई राज्यों में मास्टर प्लान के साथ जोनल
प्लान व लोकल एरिया प्लान शामिल होता है। इससे गली-मोहल्लों तक के मास्टर
प्लान के बारे में सोचा जाता है। राजस्थान व मध्यप्रदेश में मास्टर प्लान
के साथ-साथ जोनल प्लान भी बनाया जाता है। इसमें शहर में जोनवार अधोसंरचना व
ढांचागत विकास के बारे में सोचा जाता है। छत्तीसगढ़ में सिर्फ मास्टर
प्लान तैयार किया जा रहा है। जोनल व लोकल एरिया प्लान कभी भी शामिल नहीं
किया गया। इसकी वजह से शहर के कुछ स्थानों पर ही मास्टर प्लान का असर नजर
आता है,जबकि वार्डों व कालोनियों में मास्टर प्लान का असर दिखाई नहीं देता
है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में मास्टर प्लान के क्रियान्वयन के लिए अभी तक
विभागों की जिम्मेदारी तय नहीं है। अन्य राज्यों में शहर विकास प्राधिकरण
को मास्टर प्लान में उल्लेखित प्रावधानों को लागू करवाने की जिम्मेदारी दी
जाती है। प्रदेश में रायपुर विकास प्राधिकरण तो हैं, लेकिन प्राधिकरण को
अधिकार नहीं मिले हैं। बिलासपुर नगर पालिका निगम में कुल 70 वार्ड है। नए
परिसीमन में 17 गांव को नगरीय निकाय सीमा में शामिल किया गया है। यहां हालत
और भी खराब हो चुकी है, इन वार्डो में आज भी आधारभूत सुविधा नहीं है।
वार्डवासी आज भी बिजली, नाली, पानी, सड़क और गंदगी की समस्या से जूझ रहे
हैं। पानी की निकासी के लिए ड्रेनेज सिस्टम का सही नहीं होना और पेयजल की
बड़ी समस्या है। जांजगीर में जल आवर्धन योजना के तहत हसदेव नदी से
जलापूर्ति की जानी है। इसके लिए 34 करोड़ रुपये की योजना पर चार साल पहले
काम शुरू हुआ था,लेकिन 50 फीसदी काम होने के बाद भी यह अभी तक अधूरा है।
इसकी वजह से गर्मी के दिनों में भी नगरवासियों को जलावर्धन योजना से पानी
नहीं मिल पा रही है। इसी तरह नगर के 25 वार्डों में से अधिकांश वार्डों में
वर्षा के पानी की निकासी के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। इससे आए दिनों
जलभराव की समस्या देखी जा रही है। धमतरी में सड़कों की बदतर स्थिति से सब
वाकिफ है। यहां लंबे समय से फ्लाईओवर की मांग की जा रही है, लेकिन अभी तक
इसकी नींव नहीं रखी जा सकी है। काफी हंगामे व मांग के बाद धमतरी से दो
किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम मुजगहन में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने
का काम अभी शुरू हुआ है। ट्रांसपोर्टिंग व रोड इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं
होने की वजह से यहां पर्यटकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दुर्ग
जिला मंत्रियों का गृह जिला कहा जाता है,लेकिन अभी तक यहां सीवरेज
ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बनाया जा सका है। यहां शहरों से निकलने वाला गंदा
पानी जीवन दायिनी शिवनाथ नदी में मिल रहा है। दुर्ग, भिलाई, चरोदा और
रिसाली को मिलाकर जिले में चार नगर निगम है l धमधा, पाटन और उतई को मिलाकर
तीन नगर पंचायत और जामुल, कुम्हारी अहिवारा और अमलेश्वर को मिलाकर चार नगर
पालिका परिषद है। नदियों के जल को दूषित होने से बचाने के लिए दुर्ग व
भिलाई में एसटीपी बनाया जाना हैl अमृत मिशन योजना पूरी तरह पूरी नहीं होने
की वजह से कई क्षेत्रों में पेयजल का संकट बना हुआ है। सरगुजा संभाग के
सबसे बड़े नगर निगम अंबिकापुर में कई समस्याएं हैं। यहां बाइपास की सबसे
बड़ी आवश्यकता बताई जा रही है। वर्तमान में जो बाइपास है वह शहर के भीतर
होने के कारण बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही है। यहां अब तक ट्रांसपोर्ट नगर
नहीं बन पाया है। स्वच्छ शहर के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके अंबिकापुर
नगर निगम की मूल समस्याओं से जूझ रहा है । यहां व्यवसायिक परिसर की कमी
महसूस की जा रही है। नगर निगम का सालाना स्थापना व्यय 18 करोड़ रुपये
है,जबकि आमदनी 12 करोड़ रुपे है, ऐसे में शेष छह करोड़ की राशि के लिए
राज्य शासन पर निर्भर रहना पड़ रहा है।राजनांदगांव नगर निगम में कुल 51
वार्ड है। यहां भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की बड़ी समस्या है। 228 करोड़
रुपये की लागत से शहर में अमृत मिशन योजना के तहत नल कनेक्शन लगाए गए हैं।
फिर भी कई क्षेत्रों में पानी के उतार-चढ़ाव को लेकर समस्याएं देखी जा रही
है। बूढ़ासागर में गंदे पानी के प्रवेश को रोकने के लिए ढाई करोड़ रुपए की
लागत से ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण होना है, जो कि अभी तक पूरी तरह नहीं
बन सका है। कैग की रिपोर्ट पर गौर करें तो प्रदेश में 2022-23 में बनाए गए
7401 सड़कों के नमूनों में से 6852 सड़कों के नमून फेल साबित हुए हैं। यह
93 प्रतिशत के बराबर है। इसमें लोक निर्माण विभाग व अन्य एजेंसियों द्वारा
बनाई गई सड़कें शामिल हैं। कैग की रिपोर्ट के बाद इस मामले में विभाग ने कई
कंपनियों को नोटिस जारी किया है। केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से
नगर-निगमों में 24 घंटे पानी के लिए चलाए जाने वाले अमृत मिशन योजना का काम
छह साल बाद भी अधूरा है। प्रदेश में रायपुर, बिलासपुर,
दुर्ग-भिलाई,राजनांदगांव, कोरबा,रायगढ़, अंबिकापुर व जगदलपुर के लिए केंद्र
सरकार से अमृत मिशन योजना की मंजूरी दी गई है। इसके लिए 870 करोड़ रुपये
का प्रावधान भी किया गया है। कई शहरों में पाइप लाइन अधूरी हैं तो कहीं
पाइप लाइन बिछाने के बाद पानी की आपूर्ति शुरू नहीं हो पाई है। विपक्ष ने
अमृत मिशन योजना पर भ्रष्टाचार का भी आरोप लगाया। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण
क्षेत्रों में जल जीवन मिशन में करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार उजागर हो चुका
है, जिसमें कंपनियों पर कार्रवाई भी की गई।
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