बिलासपुर। आम लोगों के साथ गरीब तपके के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार ने जन औषधि परियोजना का संचालन क...
बिलासपुर।
आम लोगों के साथ गरीब तपके के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध
कराने के उद्देश्य से सरकार ने जन औषधि परियोजना का संचालन कर रही है।
सरकार का लक्ष्य है कि आम लोगों को ब्रांडेड व महंगी दवाओं के बजाए सस्ती
जेनेरिक दवाएं उपलब्ध हो सके। बावजूद जिले में केंद्र सरकार की
महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री जन औषधि योजना का लाभ जरूरतमंद तक नहीं
पहुंच पा रहा है। कारण यह है कि शहर के जिला अस्पताल और सिम्स (छत्तीसगढ़
आयुर्विज्ञान संस्थान) में संचालित जन औषधि केंद्र की हालत खराब है, एक तरह
से इस केंद्र का खुलना और न खुलना दोनों ही एक बराबर है। जिम्मेदारों के
उदासीन रवैया इसका एक बड़ा कारण बना है। मौजूदा में स्थिति यहां पर
बमुश्किल से 30 से 35 प्रकार की दवा ही मिल पाती है। हालत इतने खराब है कि
यदि कोई सामान्य सर्दी, बुखार व सिर दर्द तक की दवा मांग करते हैं तो
उन्हें केंद्र में ऐसे सामान्य दवा तक भी नहीं मिल पाती है। सिम्स और जिला
अस्पताल के जनऔषधि केंद्र में रोजाना मरीज सस्ती दवा खरीदने पहुंचते हैं।
ज्यादातर मरीजों को यहां से ब्लड प्रेशर, शूगर या विटामिन आदि की दवाएं
लेने होते हैं, क्योंकि यहां पर यह दवा बेहद सस्ती में बेचे जाने हैं लेकिन
दवा उपलब्ध ही नहीं रहता है। ऐसी स्थिति में लोग मजबूरन ब्रांडेड दवा लेने
के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में पीएम मोदी की जन औषधि योजना का हाल
बेहाल हो चुका है। शासन स्तर पर स्वास्थ्य विभाग के साथ ही सिम्स के
अधिकारियों को साफ कहा गया है कि वे ज्यादा से ज्यादा जन औषधि दवा की
बिक्री करवाने की व्यवस्था करे। डाक्टर अपने पर्ची में सभी को जन औषधि दवा
लिखे और अधिकारी इन दवाओं की व्यवस्था करे। दवा खत्म होने से पहले ही दवाओं
के नए खेप के लिए डिमांड किया जाए, पर वास्तविक में ऐसा हो नहीं रहा है।
डाक्टर पर्ची में ऐसे दवा नहीं लिख रहे हैं। वही अधिकारी दवा खत्म होने के
बाद उन्हें मंगवाने पर जरा भी रूचि नहीं दिखा रहे हैं। ऐसे में जो दवा
केंद्र से मिल रहा है, उसी से ही जन औषधि केंद्र का संचालन कर खानापूर्ति
की जा रही है। जिला अस्पताल और सिम्स के साथ ही ब्लाक स्तर पर भी जिले के
पांच सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी जन औषधि केंद्र का संचालन किया गया
था। लेकिन शुरूआत से इन सस्ती दवाओं की अनदेखी की गई। परिणामस्वरूप
धीरे-धीरे ये केंद्र बंद होने लगे। वर्तमान में महज कागजों में ही इनका
संचालन हो रहा है। सभी केंद्रों को बंद हुए एक से दो साल हो चुके हैं। जन
औषधि को हर व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए यह भी निर्णय लिया गया था कि इन दवा
दुकानों को सार्वजनिक क्षेत्र में भी खोले जाएगें। मेडिकल स्टोर खोलने के
पात्र को दुकान संचालन करने दिया जाएगा। ऐसे में शहर अंतर्गत तेलीपारा और
रेलवे परिक्षेत्र में जन औषधि की दो निजी दुकान भी खुली थी, लेकिन अब यह भी
बंद हो चुके हैं। क्योंकि दुकान खोलने के बाद जिस भी दवा की डिमांड की
जाती रही है। उसकी सप्लाई समय पर नहीं होता पाता था। ऐसे में दुकान का
संचालन घाटे का सौदा साबित हो रहा था।
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