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सिर मुंड़ाते ही पड़े ओले, रेत से निकाल रहे तेल

   रोजनामचा । एक माननीय अपने आप को तेजतर्रार साबित करने खुद का वीडियो बनवाकर वायरल करवा रहे हैं। रेत से निकलने वाले तेल की चिकनाई को वे पह...

 

 रोजनामचा । एक माननीय अपने आप को तेजतर्रार साबित करने खुद का वीडियो बनवाकर वायरल करवा रहे हैं। रेत से निकलने वाले तेल की चिकनाई को वे पहले से ही जानते हैं। अधिकारियों को फोन घनघनाकर उन्होंने धमकी दे डाली। सारे गोलमाल बंद। अब अधिकारी भी इस लाइन में पक्के हो गए हैं। अधिकारी तो पहले ही सब पैतरों से वाकिफ हैं। इधर माननीय का फोन कट हुआ उधर मातहत टेबल के सामने हाजिर।  पूरी बात मातहत को बताकर एक ही पाइंट पर काम करने कहा गया। अब पूरा अमला एक ही माफिया के पीछे पड़ गया। लंबे समय से रेत और मुरुम के कारोबार में लगे माननीय के करीबी को ही दबोच लिया गया। अब ना निगलते बने ना उगलते। इधर कारोबारी को माजरा समझते देर नहीं लगी। उसने सीधे भाव ताव करके अपना पिंड तो छुड़ा लिया। बताया जाता है इसके बाद से माननीय तोल मोल के बोल निकाल रहे हैं।  अब भई सैंया भए कोतवाल तो... वाली कहावत ऐसे ही तो नहीं बनी है। इसके पीछे बड़े-बुजुर्गों को तर्जुबा रहा होगा। अब हालिया वाकिए से इसकी पुष्टी भी हो रही है। शहर से लगे ग्रामीण थाने में मातहत के बीच चर्चा आम है। मातहत बताते हैं कि साहब के रिश्तेदार की शादी है। अब शादी है तो मेहमानों का आना-जाना भी लगा हुआ है। मेहमानों को लाने लेकर जाने के लिए साहब ने थाने की पेट्रोलिंग को लगा रखा है। इधर जांच और गश्त के लिए जवान बाइक पर दौड़ लगा रहे हैं। किसी ने इसकी जानकारी शिकायती लहजे में अधिकारी से भी की। लेकिन बड़े साहब भी उनसे खुश हैं। इसके कारण साहब ने इसे नजर अंदाज कर दिया है। अब किसी में इतनी भी हिम्मत नहीं कि कप्तान तक बात पहुंचा दे। तब लगी लाग में इधर-उधर बात फैला रहे हैं।  ग्रामीण क्षेत्र में खाकी के पास काम तो कम है। लेकर दाम के लिए अवसर बहुत हैं। एक थाना क्षेत्र में रेत से तेल निकालने वाले आरक्षक की पोस्टिंग है। साहब के इस खास जवान की काबिलियत पर किसी को शक भी नहीं है। इधर गाड़ी घाट में उतरी नहीं जवान तक सूचना पहुंच जाती है। बनी बनाई बात हो तो गाड़ी बिना किसी लाग लपेट के निकल भी जाती है। अगर नए हो तो खाकी को भेंट चढ़ावा बनता है। इसके लिए बकायदा पुराने लोगों के साथ ही मीटिंग होगी। नए लोगों को इसमें शामिल करने से परहेज है। इसके अलावा कबाड़ और कोचिए भी हैं जहां का पूरा हिसाब किताब इसी खास के पास है। उसकी हरकतों से साथी कर्मचारी भी तंग आ चुके हैं। बात साफ है अपने ही साथियों का हक मारकर साहब की नजरों में हीरो बना फिरता है। अब पूरा मामला तो साहब जाने और उनका खास। लेनदेन तो जमाने का दस्तूर बन पड़ा है। अब इसके बगैर कोई काम हो जाए तो किस्मत की बात। लेकिन इस पर भी पूरी इमानदारी जरूरी है। लेनदेन पूरी तरह से पारदर्शी हो तो सभी को फायदा मिलता है। इधर लेनदेन में साहब के मुंहलगे ने तो कमाल ही कर दिया। साहब का मुंहलगा होने का फायदा उठाते हुए एक जगह मोटी रकम वसूल कर ली। लेकिन इसमें साहब का हिस्सा पहुंचाना तो दूर उन्हें इस मामले की भनक तक नहीं लगने दी गई। साहब तो साहब हैं। हर चीज पर उनकी नजर रहती है। कोई उनका हिस्सा डकार जाए ये तो मुमकिन नहीं। साहब ने बुलाकर ऐसी डपट लगाई की पूरी रकम टेबल पर बिखरी नजर आने लगी। इसके बाद आगे किसी भी लेनदेन में इमानदारी बरतने की भी नसीहत दी गई। अब इसकी चर्चा भी पूरे महकमे में जोरों पर है। 

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