बिलासपुर। एसईसीएल के मानव संसाधन विभाग ने याचिकाकर्ता कर्मचारी के सर्विस रिकार्ड में जन्मतिथि को लेकर बड़ी चूक कर दी। इसका खामियाजा याचिक...
बिलासपुर।
एसईसीएल के मानव संसाधन विभाग ने याचिकाकर्ता कर्मचारी के सर्विस रिकार्ड
में जन्मतिथि को लेकर बड़ी चूक कर दी। इसका खामियाजा याचिकाकर्ता को भुगतना
पड़ा। मैट्रिक की अंकसूची में याचिकाकर्ता की जन्मतिथि पांच जनवरी 1959
दर्ज है। एसईसीएल के दस्तावेज में याचिकाकर्ता की उम्र को पांच साल बढ़ाकर
21 जनवरी 1954 कर दिया है। हाई कोर्ट ने एसईसीएल के फैसले को खारिज करते
हुए कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता को सेवानिवृत कर दिया गया है। लिहाजा
याचिकाकर्ता की जन्मतिथि 21 जनवरी 1959 मानते हुए सेवानिवृति के पूर्व के
लाभ का हकदार होगा। कोर्ट ने एसईसीएल को सभी देयकों का भुगतान के निर्देश
दिए हैं। रजगामार कोलियरी निवासी व एसईसीएल कर्मी अर्जुन लाल ने अपने
अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया है कि
वर्ष 1984 में वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (डब्ल्यूसीएल) में पिता को
चिकित्सकीय रूप से अयोग्य घोषित करने के कारण उसे आश्रित रोजगार के
प्रविधानों के तहत मजदूर के रूप में नियुक्ति मिली थी। सर्विस रिकार्ड में
उसकी जन्मतिथि पांच जनवरी 1959 की जगह 21 जनवरी 1954 दर्ज है। वर्ष 1995
में जन्मतिथि में सुधार की मांग की थी। इस पर सही करने का आश्वासन दिया गया
था। लेकिन अंततः मूल सेवा रिकार्ड में जन्मतिथि को सही नहीं किया गया।
उसने आयु निर्धारण समिति एडीसी से संपर्क किया और एडीसी ने याचिकाकर्ता की
जन्मतिथि 21 जनवरी 1954 निर्धारित की। एसईसीएल प्रबंधन ने इसे खारिज कर
दिया। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी की सिंगल बेंच में हुई। प्रकरण
की सुनवाई करते हुए जस्टिस भादुड़ी ने कहा कि कर्मचारियों के मामले में
मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों या बोर्ड द्वारा जारी मैट्रिकुलेशन प्रमाण
पत्र या उच्चतर माध्यमिक प्रमाण पत्र या शिक्षा बोर्ड द्वारा जारी प्रमाण
पत्र को सही माना जाना चाहिए। बशर्ते कि वे रोजगार की तारीख से पहले उक्त
विश्वविद्यालयों, बोर्ड, संस्थानों द्वारा जारी किए गए हों। कोर्ट ने यह भी
कहा कि माइनिंग सरदारशिप, वाइंडिंग इंजन या इसी तरह के अन्य वैधानिक
प्रमाणपत्र जहां प्रबंधक को जन्मतिथि प्रमाणित करनी होती है, उन्हें
प्रामाणिक माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि हम जन्मतिथि विवादों की संवेदनशील
प्रकृति का उचित सम्मान करते हैं। हालांकि जन्मतिथि में बदलाव के कारण होने
वाली व्यापक असुविधाओं को रोकने के उद्देश्य से किसी कर्मचारी को उसके
अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। खासकर तब जब उसने निर्धारित
प्रक्रिया का पालन किया हो। याचिकाकर्ता को सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि के
गलत दर्ज होने की जानकारी मिलने पर सुधार की मांग की थी। कोर्ट ने अपने
फैसले में लिखा है कि छह सितंबर 2010 को एसईसीएल के कानूनी सलाहकार ने हाई
कोर्ट के समक्ष दायर हलफनामे के आधार पर स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र की
वास्तविकता का विधिवत सत्यापन किया। इस टिप्पणी के साथ एसईसीएल प्रबंधन की
कार्रवाई को हाई कोर्ट ने गलत ठहराया है।
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