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हल्द्वानी हिंसा में दंगाइयों को कैसे मिलेगी सख्त सजा? 3 महीने में सिर्फ 8 गवाह पेश कर पाई पुलिस

   नैनीताल । हल्द्वानी हिंसा मामले की जांच में पुलिस की लापरवाही उजागर हुई है। 50 आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने...

  

नैनीताल । हल्द्वानी हिंसा मामले की जांच में पुलिस की लापरवाही उजागर हुई है। 50 आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पुलिस के रवैए पर सख्त टिप्पणी की। दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा है कि न्यायिक हिरासत की 90 दिन की अवधि बीतने के बावजूद जांच में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।

निचली अदालत में जांच अधिकारी ने समय बढ़ाने के लिए जो कारण दिए हैं, वो भी ठोस नहीं है।न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ में बीते बुधवार को मामले की सुनवाई हुई।

हाईकोर्ट ने कहा कि मामले के अभिलेख, विशेषकर निचली अदालत के अभिलेख का अवलोकन करने के बाद ये पाया गया कि अपीलकर्ता अपनी गिरफ्तारी की तिथि (13 और 16 फरवरी 2024) से न्यायिक हिरासत में हैं।

90 दिनों की पर्याप्त अवधि बीत चुकी है। जिस प्रकार से जांच आगे बढ़ी, उससे जांच अधिकारी की लापरवाही स्पष्ट रूप से उजागर होती है कि जांच कितनी धीमी गति से आगे बढ़ी। वह भी ऐसी स्थिति में जब अपीलकर्ता न्यायिक हिरासत में थे।

हाईकोर्ट ने कहा कि तीन महीने की अवधि में पुलिस ने केवल 8 सरकारी गवाहों और चार सार्वजनिक गवाहों के बयान दर्ज किए गए।  सुस्त जांच की पराकाष्ठा यह है कि पहले महीने में केवल दो सरकारी गवाहों और एक सरकारी गवाह से ही पूछताछ की गई। जांच जिस तरह से आगे बढ़ी, वह भी बहुत कुछ बयां करती है।
वनभूलपुरा हिंसा तीन महीने में सिर्फ 8 गवाह पेश कर पाई पुलिस

नैनीताल हाईकोर्ट ने वनभूलपुरा हिंसा के 50 आरोपियों की जमानत अर्जी पर सनुवाई के दौरान बुधवार को कहा कि तीन महीने की अवधि में केवल 8 सरकारी गवाहों और चार सार्वजनिक गवाहों के बयान दर्ज किए गए।

सुस्त जांच की पराकाष्ठा यह है कि पहले महीने में केवल दो सरकारी गवाहों और एक सरकारी गवाह से ही पूछताछ की गई। जांच जिस तरह से आगे बढ़ी, वह भी बहुत कुछ बयां करती है।13 फरवरी को बरामद हथियार 45 दिनों की अत्यधिक और अस्पष्ट देरी के बाद एक अप्रैल 2024 को एफएसएल को भेजे गए।

इसके अलावा 16 अप्रैल को जब्त किए गए सामान 90 दिनों की अवधि समाप्त होने के बाद 18 मई को भेजे गए। जांच अधिकारी द्वारा जो कारण बताया गया है, उससे भी कोर्ट प्रभावित नहीं हुआ।

जांच अधिकारी ने निचली अदालत में कहा कि जांच अभी तक पूरी नहीं हुई, ऐसे में जांच के लिए अपीलकर्ता की हिरासत की आवश्यकता थी। कहा कि बताए गए कारणों में से एक यह दिखाया गया है कि अभियोजन की मंजूरी का इंतजार है।
180 दिन से पहले दाखिल हो गई थी चार्जशीट

हल्द्वानी। वनभूलपुरा हिंसा मामले में 50 आरोपियों को हाईकोर्ट से जमानत मिलने के मामले में पुलिस ने समय से चार्जशीट दाखिल नहीं करने पाने के दावों को खारिज कर दिया है। एसएसपी पीएन मीणा ने मामले में कहा कि यूएपीए के सेक्शन-43 डी में प्रावधान है कि विवेचना में आवश्यकता अनुसार 90 दिन के बाद विवेचक रिमांड की अवधि बढ़ाने के लिए न्यायालय में आवेदन कर सकता है। इसी प्रावधान के तहत अधीनस्थ न्यायालयों ने समय अवधि को 180 दिन किया गया है। वनभूलपुरा हिंसा मामले में विवेचक ने 180 दिन से पहले ही यूएपीए के तहत चार्जशीट न्यायालय में दाखिल कर दी थी।
कोर्ट ने पूछा, 90 दिन में ऐसा क्या किया?

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता सीके शर्मा ने बताया कि सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रिकॉर्ड मांगे। रिकॉर्ड देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि 90 दिनों में जांच अधिकारी ने ऐसा क्या किया जो, आगे समय बढ़ाने पर पूरा हो जाएगा। तीन महीने में केवल आठ सरकारी गवाहों और चार सार्वजनिक गवाहों के ही बयान लिए जा सके। जबकि, जो सामान जब्त किया गया था उसकी जांच के लिए भी 90 दिन बाद फॉरेंसिक लैब भेजा गया।
संजय दत्त केस की भी चर्चा

अधिवक्ता सीके शर्मा ने बताया कि संजय दत्त पर लगे टाडा एक्ट की भी कोर्ट में चर्चा हुई। उस केस में जांच अधिकारी को भी तब ही समय बढ़ाने की अनुमति मिली थी जब केस में कई अहम सबूत जुटाने थे या उसी तरह की कोई परिस्थिति हो। जबकि वनभूलपुरा मामले के आरोपी पहले से ही न्यायिक हिरासत में थे तो 90 दिन में जांच पूरी हो जानी चाहिए थी।
निचली अदालत के आदेश को भी गलत माना

अंत में कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की कि चर्चा के बाद इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि विवादित आदेश कायम नहीं रह सकते। प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश ने विवादित आदेश पारित करने में गलती की है। केवल आईओ की एप्लीकेशन के आधार पर फैसला दिया गया।
पुलिस की तरफ से समय बढ़ाने को बताई गई वजह
1. पुलिस अधिकारियों को लगी चोटों की पूरक रिपोर्ट की प्रतीक्षा है
2. अधिकारियों और गवाहों के बयान दर्ज किए जाने हैं
3. चोरी हुई सर्विस रिवॉल्वर और गोला-बारूद की बरामदगी होनी है
4. बरामद वस्तुओं के संबंध में एफएसएल रिपोर्ट की भी प्रतीक्षा है
5. अभियोजन की मंजूरी की प्रतीक्षा है
6. अन्य साक्ष्य अभी एकत्र किए जाने हैं

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