प्रदेश राष्ट्र नीति के संकल्प पथ पर प्रतिबद्धता के साथ बढ़ रहा : मुख्यमंत्री डॉ. यादव राजभवन में "कर्मयोगी बने" कार्यशाला का हुआ ...
प्रदेश राष्ट्र नीति के संकल्प पथ पर प्रतिबद्धता के साथ बढ़ रहा : मुख्यमंत्री डॉ. यादव
राजभवन में "कर्मयोगी बने" कार्यशाला का हुआ शुभारम्भ
भोपाल
: राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने कहा है कि हमारे प्रधानमंत्री श्री
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश इतिहास के ऐसे पड़ाव पर पहुंच गया है,
जहां से साफ दिख रहा है कि 21वीं सदी भारत की सदी होगी। कर्मयोगी भाव,
भावनाओं के साथ विकसित भारत के लिए प्रतिबद्ध प्रयास समय की जरूरत है।
कर्मयोग दैनिक जीवन में उच्चतर उद्देश्य के लिए आगे बढ़ने का वह रास्ता है
जो व्यक्तिगत उन्नति के साथ समाज सुधार और सेवा का प्रभावी साधन है।
मुख्यमंत्री
डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि मध्यप्रदेश राष्ट्र नीति के संकल्प पथ पर
प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ रहा है। हमारी विभिन्न भाषाए, बोलियां, मनोभाव
और मूकभाव सभी संस्कृति के वह आभूषण है, जिन पर हमें गर्व है। प्रदेश में
अन्य भाषाओं तमिल, तेलुगू आदि पढ़ने वाले विद्यार्थियों को प्रदेश में
प्रोत्साहित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश में मिशन कर्मयोगी के लिए
राष्ट्रीय विशेषज्ञों को शामिल करते हुए कमेटी बनाई जाएगी।
यह बातें
राज्यपाल श्री पटेल और मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने आज राजभवन के सांदीपनि
सभागार में आयोजित कार्यशाला के शुभारंभ कार्यक्रम में कही। कार्यशाला का
आयोजन राजभवन मध्यप्रदेश द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, निजी विश्वविद्यालय
नियामक आयोग और यूनाइटेड कॉन्शियसनेस के सहयोग से किया गया था।
मुख्यमंत्री
डॉ. यादव का राज्यपाल के अपर मुख्य सचिव श्री के.सी. गुप्ता और अपर मुख्य
सचिव श्री अनुपम राजन ने छिंदवाड़ा के पारंपरिक बुनकरों द्वारा तैयार
उत्तरीय परिधान और पुष्प-गुच्छ से स्वागत किया। कार्यशाला में उप कुलपति
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित,
मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग के अध्यक्ष श्री भरत शरण सिंह,
मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के संचालक श्री अशोक कड़ेल, आयुक्त उच्च
शिक्षा श्री निशांत बरबड़े भी मंचासीन थे।
कर्मयोगी कार्य संस्कृति को बनायें सशक्त
राज्यपाल
श्री पटेल ने कहा कि आज हमारे देश ने ज्ञान, विज्ञान, अर्थव्यवस्था सभी
क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है। दुनिया में भारत की नई पहचान और साख
बनी है। हमारा देश ऐसे मोड़ पर है, जहां से एकजुट और एकमत प्रयासों से
राष्ट्र विकास की नई इबारत लिखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि 4-5 दशक पूर्व
आज के विकसित राष्ट्रों में भी ऐसे ही मोड़ आए थे। नागरिकों के
कर्तव्यनिष्ठ और समर्पित प्रयासों से राष्ट्र का स्वरूप बदल दिया। राज्यपाल
श्री पटेल ने कहा कि विकसित भारत निर्माण के लिए कर्मयोगी, भावी पीढ़ी का
निर्माण शिक्षकों का दायित्व है। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में
कर्मयोगी बनने के लिए काम की प्रकृति चाहें जो भी हो, व्यक्तिगत लाभ की
इच्छा, परिणाम, सफलता और असफलता किसी की भी चिंता किए बिना लगातार कार्य
करना होगा। राज्यपाल श्री पटेल ने कहा कि कर्मयोग पथ के अभ्यासी को
शुरु-शुरु में परिणामों की चिंता, समाज की अपेक्षाएं, मान्यताएं और दैनिक
जीवन की व्यस्तताओं में समय की कमी आदि की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता
है। ये सभी चुनौतियां सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ समय प्रबंधन और कर्तव्य
पालन, ध्यान, साधना तथा चिंतन के नियमित आध्यात्मिक अभ्यास से दूर हो जाती
है। राज्यपाल श्री पटेल ने शिक्षा के तीर्थ स्थलों के प्रमुखों अपेक्षा की
है कि वे कर्मयोग के सिद्धांतों पर शिक्षण, शोध कार्य के साथ ही
विश्वविद्यालय के भीतर और बाहर स्वैच्छिक सेवा गतिविधियों को और अधिक
प्रोत्साहित करें। व्यक्तिगत-व्यावसायिक जीवन में स्थिर भाव से कार्य की
संस्कृति के द्वारा शैक्षणिक समुदाय के भीतर करुणा, सहानुभूति और पारस्परिक
सहयोग को मजबूत बनायें। कर्मयोग के अभ्यास के लिए प्रेरक वातावरण निर्माण
के कार्य करे। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि कार्य शाला का चिंतन कर्मयोग
के वैचारिक, व्यवहारिक आयामों को प्रकाशित करेंगे। निःस्वार्थ कर्तव्य पालक
कर्म योगियों के निर्माण का मंच बनेगा।
कार्य शाला कर्मवाद के पुर्नजागरण की पहल: डॉ. मोहन यादव
मुख्यमंत्री
डॉ. यादव ने कहा कि कर्मयोगी कार्य शाला का आयोजन अद्भुत है। कार्यक्रम का
भाव और भावना अभूतपूर्व है। सौभाग्य की बात है कि 5 हजार वर्ष पूर्व
प्रदेश की धरती से शिक्षित कर्मयोगी के कर्मवाद का पुनर्जागरण प्रदेश से ही
हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी
कर्मयोगी ऋषि परंपरा का अक्षरक्ष: प्रतिरूप है। प्रधानमंत्री जी के
मनोभावों के आधार पर सुशासन के दृष्टिगत होने वाले सभी सुशासन के प्रयोगों
को अंतिम कड़ी तक पहुँचाने का प्रयास मिशन कर्मयोगी है। निष्काम भाव, अहंकार
से मुक्त बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के लिए निरंतर कार्य करना ही कर्मयोग
है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की विशालता अद्भुत है, जो अतिरंजित
बातों को भी सुन लेती है। सही, अच्छी बातों को सद्भावना के साथ लेकर आगे
चलती है। इसी लिए आज दुनिया भारतीय दर्शन से प्रेरणा प्राप्त कर रही है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि भारतीय संस्कृति का दायरा असीमित है,
जिसमें सारे ब्रह्मांड के कल्याण का चिंतन है। भारत के तक्षशिला, नालंदा और
विक्रमशिला विश्वविद्यालय जैसे ज्ञान के केंद्र सम्पूर्ण मानवता के लिए
कार्य करते थे। भारत ने कभी दूसरे देशों पर आक्रमण नहीं किया।
कर्मयोग का चिंतन लक्ष्य पूर्ति के लिए निरंतर कार्य करना : मंत्री श्री परमार
उच्च
शिक्षा मंत्री श्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि कर्मयोगी बने कार्य शाला
दूरगामी पहल है। कार्य शाला का चिंतन शिक्षा जगत में आमूल चूल परिवर्तन का
माध्यम बनेगा। उन्होंने कहा कि कर्मयोग का चिंतन लक्ष्य पूर्ति के लिए
निरंतर कार्य करते रहना है। समय और परंपराओं का अनुपालन मात्र राष्ट्र जीवन
के लिए पर्याप्त नहीं है। राष्ट्र की आवश्यकता लक्ष्य पूर्ति के लिए
निरंतर कार्य करते रहना है। कर्मयोग का चिंतन इसी अवधारणा पर आधारित है।
उन्होंने कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कर्तव्यों
का सर्वश्रेष्ठ पालन आवश्यक है।
नियमों के चिंतन से भूमिका की चिंता की ओर जाए : बाला सुब्रह्मण्यम
मानव
संसाधन क्षमता निर्माण आयोग, मिशन कर्मयोगी के सदस्य प्रोफेसर बाला
सुब्रह्मण्यम ने कहा कि न्यू इंडिया के लिए टीम इंडिया जरूरी है। टीम
इंडिया के लिए कर्मचारियों को कर्मयोगी बनाना होगा। जरूरी है कि कर्मचारी
विकसित भारत के भविष्य के लिए तैयार रहे। इसके लिए जीवन की सीख के द्वारा
उनकी क्षमता को बढ़ाना होगा। क्षमता वृद्धि के लिए नियमों के चिंतन से
भूमिका की चिंता की ओर जाना होगा। इसके लिए विकास का संकल्प, हमारी
परंपराओं के प्रति गर्व का एहसास, अधिकारों की अपेक्षा, कर्तव्यों पर बल के
चार संकल्प आवश्यक है। स्वाध्याय, समर्पण और स्वधर्म का प्रतिबद्ध पालन
जरूरी है। उन्होंने मध्यप्रदेश में इस दिशा में हो रहे प्रयासों की सराहना
करते हुए बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर मिशन कर्मयोगी 2021 में शुरू हुआ।
वर्ष 2022 में प्रदेश देश का पहला राज्य था जिसने इसकी पहल की । मध्यप्रदेश
राष्ट्रीय स्तर से पहले प्रशिक्षण नीति बनाने वाला देश का पहला राज्य है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में इस दिशा में भी कार्यशाला के रूप में पहला
प्रयोग भी मध्यप्रदेश ने ही किया है। उन्होंने आयोग के द्वारा राज्य सरकार
के प्रयासों में सहयोग की बात कही है।
शिक्षकों को गुरु बनना होगा : प्रोफेसर के. राधाकृष्णन
बोर्ड
ऑफ गवर्नर्स आई.आई.टी. कानपुर के अध्यक्ष पद्मश्री के. राधाकृष्णन ने कहा
कि विकसित भारत के लिए शिक्षकों को गुरु बनना होगा। श्रीमद् भगवत गीता के
700 श्लोक धर्म से प्रारंभ होकर मम पर समाप्त होते हैं श्रीमद् भगवत गीता
सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से धर्म पथ को प्रदर्शित कर बताती है कि समय का
कर्म ही व्यक्ति का धर्म है। इसी लिए वह शाश्वत और प्रासांगिक है। उन्होंने
कहा कि सभी परिस्थितियों में सम भाव से समान प्रयास और आसक्तियों को
त्यागना ही कर्मयोग है। उन्होंने कहा कि भगवत गीता के अध्याय 16 में उत्तम
व्यक्तियों के नैतिक मूल्यों का वर्णन किया गया है। युवाओं में सुप्त
अवस्था वाले इन नैतिक मूल्यों को जाग्रत कर शिक्षकों को गुरु बनना होगा।
कर्मयोगी शिक्षा की चुनौतियों और समाधान की पहल: विक्रांत सिंह तोमर
यूनाइटेड
कॉन्शियसनेस के ग्लोबल संयोजक श्री विक्रांत सिंह तोमर ने कार्यशाला के
संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि कार्यशाला में 78 विश्वविद्यालयों के
शिक्षा जगत के ख्यात नाम शामिल हुए है। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश में
कर्मयोगी शिक्षा का वातावरण बनाने की चुनौतियों और समाधान पर 11 हजार 7 सौ
से अधिक शिक्षक और विद्यार्थियों ने चिंतन किया। उन्होंने 450 चुनौतियों और
समाधान का चिन्हांकन किया है। प्रमुख 11 चुनौतियों और समाधान पर
शिक्षाविदों के द्वारा कार्य शाला में विचार विमर्श किया जाएगा।
कार्यशाला
प्रतिभागियों में प्रदेश के सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के कुलगुरु,
कुलपति, कुल सचिव, प्राचार्य पी.एम एक्सीलेंस और स्वशासी महाविद्यालय शामिल
थे।
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